भोजन और भजन का संबंध
शारीरिक विकास के लिए भोजन पानी और हवा पर्याप्त मात्रा में मिलना आवश्यक है। इसके बिना शरीर का पूर्ण विकास संभव नहीं। इसी प्रकार मन का पूर्ण भोजन .उत्तम विचार है। इसके अभाव में मनुष्य का मन कुंठित हो जाता है। स्वाध्याय सत्संग मनन चिंतन आदि के बिना मनुष्य का मस्तिष्क पशु श्रेणी में ही बना रहता है।
🌺जिस प्रकार शरीर के लिए संतुलित भोजन मन के लिए उत्तम विचार आवश्यक हैं उसी प्रकार जीवात्मा को स्वस्थ रखने बलवान बनाने और विकसित करने के लिए नित्य प्रति भगवत.साधना का संतुलित भोजन आवश्यक है। जैसे भोजन के अभाव में शरीर का विकास रुक जाता है और उत्तम विचारों के न मिलने पर मन कुंठित हो जाता है उसी प्रकार भगवान की पूजा.उपासना न करने से भी जीवात्मा की शुभ कर्म करने की प्रेरक शक्ति कुंठित हो जाती है और अपने पूर्ण विकास की स्थिति परमात्मा की प्राप्ति से वंचित रह जाती है।
🌺जीवात्मा को निर्मल बनाने पर ही दिव्य.तत्वों का आभास होता है। इसलिए जिस प्रकार घर की सफाई के लिए बुहारी लगाना कपडों की सफाई के लिए साबुन लगाना शरीर शुद्धि के लिए स्नान करना आवश्यक है उसी प्रकार संसार की दुष्प्रवृत्तियों के प्रभाव से जीवात्मा पर जमा होते रहने वाले कुसंस्कारों एवं मल.विक्षेपों को हटाते रहने के लिए परमात्मा के पवित्र नामों का उच्चारण और उसके गुणों का चिंतन करना आवश्यक है।