राहुल शर्मा
नई दिल्ली, । कोई भी व्यक्ति सबसे ज्यादा भरोसा बैंक पर करता है फिर बात चाहें बैंक के पास पैसे रखने की हों, कीमती जेवर रखने की हों या फिर जमीन के कागज बैंक के पास गिरवी रखकर कर्ज लेने की हो। लेकिन कभी-कभी बैंक से भी चूक हो जाती है और गिरवी रखी जमीन के कागज खो जाते हैं। ऐसा ही कुछ स्टेट बैंक आफ इंडिया (ैठप्) की लुधियाना की लिंक रोड शाखा से हो गया। एसबीआई की इस बैंक शाखा से गिरवी रखी जमीन के कागज खो गए हैं और अब बैंक को उसका हर्जाना देना होगा। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने बैंक को सेवा में कमी का जिम्मेदार ठहराते हुए एसबीआई की अपील खारिज कर दी है। बैंक ने पहले राज्य आयोग में चुनौती दी थी लेकिन राज्य आयोग ने याचिका खारिज कर दी थी।
एसबीआई की अपील हुई खारिज
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (छब्क्त्ब्) ने बैंक को सेवा में कमी का जिम्मेदार ठहराते हुए एसबीआई की अपील खारिज कर दी है और कागज खोने पर 25,000 रुपये मुआवजा व 2000 रुपये मुकदमा खर्च शिकायतकर्ता को देने के जिला उपभोक्ता फोरम व राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। ये फैसला गत 3 जनवरी को एनसीडीआरसी के पीठासीन सदस्य सी. विश्वनाथ और सदस्य सुभाष चंद्रा की दो सदस्यीय पीठ ने जिला फोरम और राज्य आयोग के फैसले से सहमति जताते हुए एसबीआई की अपील (रिवीजन पिटीशन) खारिज करते हुए सुनाया। एनसीडीआरसी ने फैसले में कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ता (एसबीआई) सेल डीड खोने की जिम्मेदार है। शिकायतकर्ता ने उसे (एसबीआई) संपत्ति के जो दस्तावेज सौंपे थे, उसकी उसे सुरक्षा करनी चाहिए थी। ग्राहक के कीमती ओरिजनल दस्तावेजों की सुरक्षा के लिए उचित कदम न उठाया जाना साफ तौर पर सेवा में कमी है, इससे ग्राहक को गंभीर हानि हुई है।
एनसीडीआरसी ने फैसले में आयोग के ही एसबीआई बनाम अमितेश मजूमदार के पूर्व फैसले का हवाला दिया है जिसमें कहा गया था कि ओरिजनल टाइटिल डीड न होने से संपत्ति की मार्केट कीमत गिर जाती है। कोई भी व्यक्ति ऐसी संपत्ति मौजूदा मार्केट कीमत पर नहीं खरीदना चाहता जिसमें उसे पता हो कि बेचने वाला उसे ओरिजनल टाइटिल डीड नहीं देगा। उस फैसले में यहां तक कहा गया था कि बैंक भी ओरिजनल टाइटिल डीड न होने पर अचल संपत्ति के बदले कर्ज देने की इच्छुक नहीं होगी।
क्या था पूरा मामला ?
लुधियाना के रहने वाले जितेन्दर पाल सिंह ने मैसर्स शेरी निटवियर के लिए 1997 में बैंक से 20000 रुपये की एडवांस क्रेडिट लिमिट मंजूर कराई यानी कर्ज लिया और इसके बदले एसबीआई बैंक की लिंक रोड शाखा लुधियाना ने जितेन्द्र पाल सिंह की लुधियाना सिविल लाइंस में गुरुनानक पुरा स्थिति सौ वर्गगज जमीन के कागज बंधक रख लिए। 2010 में वन टाइम सेटलमेंट में सारा कर्ज उतारने के बाद जितेन्द्र पाल सिंह ने बैंक से जमीन के कागज वापस मांगे लेकिन बैंक से कागज खो चुके थे और बैंक कागज नहीं वापस कर पाई। काफी चक्कर काटने के बाद जितेन्द्र पाल सिंह ने बैंक के खिलाफ जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत दाखिल कर बैंक से जमीन के ओरिजनल कागज वापस दिलाए जाने साथ ही हुई परेशानी के लिए एक लाख रुपये मुआवजा दिलाने की मांग की।
जिला फोरम ने शिकायत स्वीकार करते हुए बैंक को सेवा में कमी का जिम्मेदार ठहराया और बैंक को आदेश दिया कि वह शिकायतकर्ता को हुई परेशानी के लिए 25000 रुपये मुआवजा व 2000 रुपये मुकदमा खर्च दे साथ ही लापरवाही के दोषी बैंक अधिकारियों के खिलाफ जांच और कार्रवाई की जाए। बैंक ने इस आदेश को पहले राज्य आयोग में चुनौती दी थी लेकिन राज्य आयोग ने याचिका खारिज कर दी थी जिसके बाद बैंक राष्ट्रीय आयोग आयी थी।
बैंक ने शिकायतकर्ता पर लगाया था रिकवरी केस
बैंक की दलील थी कि वह सेवा में कमी के लिए जिम्मेदार नहीं है क्योंकि उसने कुछ भी जानबूझकर नहीं किया है। बैंक ने कहा कि शिकायतकर्ता ने शेरी निटवियर के नाम से कैश क्रेडिट लिमिट ली थी। बाद में शिकायतकर्ता पैसा देने में अनियमित हो गया जिस पर बैंक ने उसके खिलाफ रिकवरी केस डाला। बैंक ने कहा कि एनपीए एकाउंट नियम के मुताबिक एसएआरबी (स्ट्रेस एसेट्स रिस्यूलूशन ब्रांच) को ट्रांसफर कर दिया जाता है। पहले एसएआरबी को एसएआरसी कहा जाता था।
बैंक की दलीलें नहीं हुई स्वीकार
एसएआरसी ने संबंधित शाखा के साथ मिल कर एकाउंट सेटल किया था इस क्रम में कई बार फाइल और दस्तावेज एक विभाग से दूसरे विभाग गए जिसमें बैंक के पास बंधक रखे संपत्ति के दस्तावेज की सेल डीड खो गई। बैंक ने दस्तावेज ढूंढने का बहुत प्रयास किया लेकिन वे नहीं मिले। जब भी दस्तावेज मिलेंगे बैंक लौटा देगा। लेकिन ये दलीलें एनसीडीआरसी ने नहीं मानी और बैंक की याचिका खारिज कर दी।