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विज्ञान के क्षेत्र में नई खोज के वाहक बन सकते हैं /22 Aug 2023 12:11 PM/    95 views

प्रतिभा का दायरे

किसी भी बच्चे के भीतर रचनात्मकता की असीम संभावनाएं होती हैं। अगर उसे एक सीमित ढांचे के भीतर समेट दिया जाता है तो उसकी प्रतिभा भी उसी दायरे में सिमट कर रह जाती है। इसलिए बचपन और किशोरावस्था में ही रुचियों की पहचान करके अगर किसी बच्चे को उसकी रुचि के क्षेत्र में जानने-समझने और कुछ करने का अवसर दिया जाए तो पूरी संभावना है कि भारी तादाद में बच्चों की प्रतिभा सामने आएगी और उसका लाभ देश और समाज को मिलेगा। हालांकि शिक्षा व्यवस्था में यह एक बुनियादी पक्ष होना चाहिए और कुछ हद तक इसका खयाल रखा भी गया है, मगर अब सरकार औपचारिक रूप से इस दिशा में एक ठोस पहल करने जा रही है। गौरतलब है कि शिक्षा मंत्रालय स्कूली विद्यार्थियों को वैज्ञानिक पद्धतियों और प्रयोगों से परिचित करा कर उन्हें अनुसंधान और खोज का अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से प्रयास यानी प्रमोशन आफ रिसर्च एटीट्यूड इन यंग एंड एन्सपायरिंग स्टूडेंट्स योजना शुरू करने जा रहा है। इस योजना का मकसद युवा विद्यार्थियों के बीच वैज्ञानिक चिंतन उत्पन्न करना और साक्ष्य आधारित विज्ञान प्रक्रिया, नवीनता और रचनात्मकता का विकास करना है ।
यह एक तथ्य है कि बच्चों और किशोरों में खोजने और सीखने की प्रक्रिया काफी तीक्ष्ण होती है। खासकर अगर पढ़ाई-लिखाई के दौरान उनकी रुचि के विषय को निर्बाध तरीके से विकसित होने दिया जाए तो उनकी रचनात्मकता अक्सर कुछ नया खोज लाती है । लेकिन हमारे यहां आमतौर पर निर्धारित पाठ्यक्रम ज्यादातर बच्चों के लिए शिक्षण के ढांचे का एक अनिवार्य हिस्सा होता है और उसी के मुताबिक उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करनी होती है। इसमें कई वैसे बच्चों की प्रतिभा दबी रह जाती है, जिनकी अभिरुचियों को सही दिशा और उसे समझने का अवसर नहीं मिल पाता है। बल्कि इसके उलट ऐसे मामले आम हैं, जिनमें स्कूली शिक्षा के दौरान कई बार अभिभावक बच्चों को ऐसे विषयों की पढ़ाई में झोंक देते हैं, जिसे उन्हें जबरन पढ़ना पड़ता है । यह मान लिया जाता है कि निर्धारित पाठ्यक्रम और अभिभावकों की इच्छा के मुताबिक ही बच्चों की शिक्षा-दीक्षा होनी चाहिए, उन्हें अपनी पसंद के विषय में कुछ नया समझने और सीखने के प्रति हतोत्साहित किया जाता है।
यह एक ऐसी स्थिति होती है, जिसकी वजह से स्कूली शिक्षा के दौरान बहुत सारे बच्चों की रचनात्मक प्रतिभा का एक तरह से दमन हो जाता है । जो बच्चे ज्ञान - विज्ञान के क्षेत्र में नई खोज के वाहक बन सकते हैं, वे एक बने-बनाए रास्ते के यात्री बने रह जाते हैं । इस लिहाज से देखें तो प्रयास की अहमियत इस रूप में दर्ज की जा सकती है कि इसमें व्यक्तिगत रूप से या समूहों में अनुसंधान या खोज करने के लिए विद्यार्थियों की क्षमता विकास पर जोर दिया गया है। दरअसल, बच्चे सबसे ज्यादा अपने आसपास के वातावरण को देख-समझ कर सीखते हैं। शायद यही वजह है कि इस योजना के तहत किसी स्थानीय समस्या की पहचान और उसका अध्ययन करने, इसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों की जांच करने और समाधान खोजने के साथ-साथ किसी विचार, कल्पना या अवधारणा पर शोध करने पर जोर दिया गया है। जाहिर है, अगर बच्चों और किशोरों के मनोविज्ञान की समझ रखने वाले विशेषज्ञों के सुचिंतित निर्देशन में सही दिशा में अवसर उपलब्ध कराए गए तो यह योजना विद्यार्थियों की कल्पनाशीलता और रचनात्मकता के आकाश को विस्तार देने के लिहाज से एक अहम पहल साबित हो सकती है।
 

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