राम आ गए ,अब राहुल की खबर लीजिये....
देश में राम भी आ गए और राम राज भी । देश में मीडिया को अब राहुल गांधी समेत देश -दुनिया में हो रही दूसरी घटनाओं की खबर भी लेना-देना चाहिए। राहुल अयोध्या से कोसों दूर हैं ,लेकिन मगरूर नहीं है। कैमरे उनके आगे-पीछे नहीं दिखाई देते लेकिन उनके चारों और जाने-अनजाने चेहरों की भीड़ है। वे राम की वापसी पर अपने घर में अकेले दीपोत्सव नहीं मना रहे लेकिन उनके आसपास खूब चहल-पहल है,यानि वे अकेले नहीं हैं और कुछ लोग हैं जिनके साथ पूरा देश है ,लेकिन वे एकदम अकेले हैं। वे घर में भी अकेले हैं और मंदिर में भी । वे रेड कार्पेट पर भी अकेले हैं और भीड़ में भी।
राहुल गांधी के हाथ में धर्मध्वजाएं हैं। रेशमी कपड़े भी नहीं हैं बेचारे के पास। राहुल ने धारा के विपरीत जाकर आपने हाथ में न्याय का ध्वज उठा रखा है । अयोध्या में लोगों को नव-निर्मित राम मंदिर के दर्शन करने के लिए सरकार जनता को ढोकर ला रही है लेकिन असम में भाजपा की डबल इंजिन की सरकार राहुल गांधी को मंदिर में नहीं जाने देती । वे भारत जोड़ने केलिए न्याय यात्रा निकालते हैं तो उनके खिलाफ मुकदमे दायर करती है। राम राज का श्रीगणेश असम और अयोध्या से हुआ है शायद।
राम के विग्रह में प्राण-प्रतिष्ठित करने के लिए आभासी से असल जजमान बने हमारे भाग्यविधाता 11 जनवरी से यम-नियम का पालन कर रहे थे और दूसरी तरफ राहुल गांधी 14 जनवरी से सड़कों पर पसीना बहा रहे थे। एक को राम पर भरोसा है और दूसरे को राम की प्रजा पर। एक राम मंदिर की परिक्रमा लगा रहा है और दूसरा जन-परिक्रमा पर है। दोनों की अपनी-अपनी पसंद है । एक भाग्यविधाता है और दूसरा शायद ऐसा सपना देखता है ,लेकिन चूंकि देश में राम राज आ गया है इसलिए उसे क्या ,किसी को भी सपने देखने की इजाजत नहीं है।
मेरी राहुल के प्रति कोई सहनुवभूति नहीं है। मेरी उसके पिता और दादी के प्रति भी कोई सहानुभूति नहीं रही हालाँकि राहुल के पिता और दादी देश के लिए शहीद हो चुके हैं। राम को मानने वाले राहुल के पिता और दादी को शहीद नहीं मानते। ऐसा तभी सम्भव है जब या तो राहुल गांधी भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की भांति भाजपा में शामिल हो जाएँ या फिर अपने घर बैठ जाएँ। ये दोनों बातें नामुमकिन लगती हैं ,जाहिर है कि राहुल गांधी उस तरह की जल्दबाजी में नहीं हैं जितने की राहुल गांधी को ख़्वाबों में सिंघासन पर बैठा देखने से भयभीत लोग है।
राहुल भारत जोड़ो यात्रा के दुसरे चरण में कल 9 दिन चल चुके है। आप कह सकते हैं कि वे नौ दिन चले ,अढ़ाई कोस वाली कहावत ही चरितार्थ कर रहे है। लेकिन ऐसा है नही। देश का रामरंग में डूबा मीडिया अभी राम मंदिर और रामभक्त भाग्यविधाताओं के अलावा न कुछ देखना चाहता है और न जनता को ये सब दिखाना चाहता है। भारतीय मीडिया का राम नाम सत्य तो कभी का हो चुका है । आज का मीडिया इशारों पर नाचने वाली कठपुतली की तरह है। वैसे भी राम राज में सभी को कठपुतली की ही तरह राम गुसाईं सभी को नाच - नचाते हैं।
राहुल गांधी की न्याय यात्रा को कव्हर कर रहे बीबीसी के संवाददाता दिलीप कुमार शर्मा बताते हैं कि असम से गुजर रही कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा बीते दो दिनों से राजनीतिक टकराव में घिर गई है। दरअसल राहुल गांधी का सोमवार नगांव ज़िले के बटाद्रवा स्थित श्री श्री शंकर देव सत्र (मठ) मंदिर जाने का कार्यक्रम था लेकिन स्थानीय प्रशासन ने उन्हें करीब 17 किलोमीटर पहले ही हैबोरगांव में रोक लिया। असमिया समाज में प्रतिष्ठित वैष्णव संत श्रीमंत शंकर देव की जन्म स्थली बटाद्रवा सत्र मंदिर में जाने से रोकने से नाराज़ कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने कार्यकर्ताओं के साथ हैबरगांव में ही धरने पर बैठ गए। राम राज में और खासकर डबल इंजन की सरकार में ऐसा बहुत आसान नहीं है कि कोई सड़क चलता आदमी किसी मंदिर में दर्शन कर ले। सड़कें नाप रहे राहुल गांधी को शायद ये पता नहीं है।
कांग्रेस कि राहुल गांधी राम भक्त हैं या नहीं लेकिन वे जिस जगह धरने पर बैठे , वहां उनके समर्थक रघुपति राघव राजाराम,पतित पावन सीताराम भजन गाते दिख रहे थे। अब राहुल और इस देश का मालिक राम ही है। देश में लोकतंत्र रामतंत्र में बदलेगा या लोकतंत्र ही रहेगा ,इसका अनुमान लगाना कठिन है। हम तो बचपन से सुनते आये हैं कि तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार,उदासी मन काहे को करे ? इसलिए राहुल की दशा-दुर्दशा देखकर मेरा मन उदास नहीं है। भारत में इस समय विपक्ष को छोड़ कोई उदास नहीं है। सब खुश है। घर में चाहे दो जून की रोटी न हो लेकिन विश्व गुरु स्वामी जगदाचार्य कि निर्देश पर दीपावली मना रहे हैं।
राम राज में राम ही सबसे बड़ा उद्यम है। राम ही सबसे पड़ा कारोबार हैं। आप राम के नाम पर राजनीति भी कर सकते हैं और कारोबार भी। उत्तर प्रदेश सरकार को पता है कि अयोध्या में राम कि आने कि बाद आबे वाले दिनों में 25 हजार करोड़ का कारोबार होगा। इतना पैसा तो अडानी और अम्बानी भी उत्तर प्रदेश सरकार को नहीं दिला सकते। काशी में भगवान शिव की कृपा से पर्यटन उद्योग फल-फूल चुका है। अयोध्या में राम जी कि आने कि बाद काशी का कीर्तिमान टूटेगा। अब बारी मथुरा की है। आम चुनाव में राम-राम और राधे-राधे ही सूत्र वाक्य बनने वाले हैं।
रामराज में भोंपू मीडिया से यदि आप निराश हैं तो यूट्यूब पर चलने वाले सोशल मीडिया की तरफ हाथ साफ़ करना सीख लीजिये सोशल मीडिया पर कम से कम अआप्को मीडियाकर्मी राम-राम का जाप करते नहीं मिलेंगे । वहां आपको दूसरी धुनें भी सनाई दे सकती है। चलिए आने वाले दिनों में देश की अपने गणतंत्र की साल गिरह भी मनाना है। उस दिन देश में आपको लोकतंत्र का ज्वर देखने को नहीं मिलेगा,क्योंकि उसके पीछे सरकार खुद खड़ी नहीं होती । गणतंत्र, जनता का तंत्र है,कोई गंडा-ताबीज नहीं। जनता जानती है कि उसके लिए कौन सा तंत्र आवश्यक है ।