सोनिया शर्मा
नई दिल्ली । जब चीते की तस्वीर वाले हवाई जहाज से विदेशी मेहमानों को अफ्रीका से लाया गया था, तब देश में उत्सव का माहौल था। पीएम नरेंद्र मोदी खुद इन चीतों को छोड़ने कुनो जंगल पहुंचे थे। लेकिन जिस बात का डर उस समय कुछ जानकारों ने जताया था, आज वैसा ही कुछ हो रहा है। दरअसल दुखद खबर यह है कि पिछले चार महीने में ही सातवें चीते की मौत हो गई है। अधिकारियों ने बताया है कि आपसी लड़ाई के कारण एक और चीते की मौत हुई है। तेजस नामक इस नर चीते को इसी साल दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था। मार्च से अब तक कुनो में नामीबियाई चीता ‘ज्वाला’ से पैदा हुए तीन शावकों सहित 7 चीतों की मौत हो चुकी है। पिछले साल सितंबर में चल रही जोर शोर से चीतों को देश में बसाने की योजना को तगड़ा झटका लगा है।
कहा जा रहा था कि 70 साल बाद चीतों को फिर से देश में बसाने का यह महामिशन है। लेकिन कई वन्यजीवी जानकार ने पूरे मिशन पर संदेह जताकर कई सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि जंगल में विदेशी प्रजाति का प्रवेश कराया जा रहा है। वैसे चीते भारत में दशकों पहले रहे हैं, लेकिन नामीबिया या किसी दूसरे अफ्रीकी देश से लाए गए चीते जेनेटिकली वही नहीं हैं। इसके बाद भारत के हिसाब से ये एलियन प्रजाति है। एशियाई चीतों की जीवित प्रजाति केवल ईरान में पाई जाती है।
प्रोजेक्ट चीता दुनिया का अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट है। अभी चीतों की मौत की वजह लड़ाई बताई जा रही है। पिछले साल ही एक्सपर्ट ने आशंका जाहिर की थी कि क्या भारत के जंगलों में अफ्रीकी चीते सुरक्षित रह पाएंगे? उन्हें इलाके और शिकार के लिए तेंदुए और टाइगरों से प्रतिस्पर्धा करनी होगी। अफ्रीकन चीतों के लिए लेपर्ड सबसे बड़ा खतरा बन सकते हैं क्योंकि कुनो में 100 वर्ग किमी के दायरे में इनकी संख्या 9 के करीब हो सकती है। जानकार ने भी भारत में इन चीतों के सर्वाइवल पर संदेह जाहिर किया था। उन्होंने कहा था, हमारे पासे फ्री घूमने वाले जंगली चीतों के लिए ठिकाने या शिकार की प्रजातियां नहीं हैं। उन्होंने कहा था कि अफ्रीकी चीते कभी भी भारत में नहीं रहे हैं। यह उनका स्वाभाविक घर नहीं है। उन्हें आयात किया गया है, बसाकर शिकार के लिए ट्रेंड किया जाएगा। एक्सपर्ट ने यह भी कहा कि पिछले 300 साल में भारत में जो चीते रहे भी हैं, वे ज्यादातर घरेलू थे।