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धरती के घूमने की रफ्तार पर भी पड़ रहा इसका असर /08 Apr 2024 11:42 AM/    6 views

ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ पिघल रही तेजी से

वॉशिंगटन  नए अध्घ्ययन से पता चला है कि वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी के कारण ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ तेजी से पिघल रही है। शोध के मुताबिक, इसका असर धरती के घूमने की रफ्तार पर भी पड़ रहा है। शोधकर्ता डंकन एगन्यू के मुताबिक, धरती सदा एक ही रफ्तार से नहीं घूमती है। लिहाजा, यूनिवर्सल टाइम पर इसका असर पड़ता है।  शोधकर्ताओं के मुताबिक, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ तेजी से पिघलने के कारण धरती के घूमने की रफ्तार में आ रहे बदलाव के चलते कॉर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम भी बदल सकता है। अध्घ्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक समय में 1972 के बाद से लीप सेकंड जोड़ने की जरूरत महसूस हो रही है। कंप्घ्यूटिंग और वित्तीय बाजार में नेटवर्क गतिविधियों के लिए सटीक समय की जरूरत होती है। धरती के घूमने की गति बदलने से पैदा हुई कमी को दूर करने और यूनिवर्सल टाइम को सही करने के लिए जोड़े जाने वाले एक अंतराल सेकंड को लीप सेकंड कहा जाता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, धरती के घूमने की रफ्तार तेज होने के कारण लीप सेकंड मेंटेन करने की जरूरत है। हालांकि, एगन्घ्यू का कहना है कि 2029 तक लीप सेकंड कम करने की जरूरत नहीं होगी। उनका कहना है कि बढ़ते तापमान का असर वैश्विक समय पर ज्यादा पड़ सकता है। पृथ्वी के तेजी से घूमने के कारण 2029 में नकारात्मक लीप सेकंड आ सकता है। इसकी वजह से स्मार्टफोन और कंप्यूटर काम करना बंद कर सकते हैं। वैज्ञानिक अब ग्लोबल वार्मिंग के कारण अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने से पैदा होने वाले खतरों पर चर्चा करने लगे हैं।
उनके मुताबिक, बर्फ इतनी तेजी से पिघल रही है कि समुद्र के अंदर पानी का बहाव हल्का हो रहा है। ऐसे में दुनियाभर में पानी के स्रोतों में ऑक्सीजन की कमी होने लगेगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि ध्रुवों पर बर्फ के तेजी से पिघलने से उन जगहों पर बदलाव आता है, जहां पृथ्वी का द्रव्यमान केंद्रित है। इससे धरती के कोणीय वेग पर असर पड़ता है। ध्रुवों पर बर्फ की कमी से भूमध्य रेखा पर अधिक द्रव्यमान हो जाएगा, जिससे धरती के घूमने की गति प्रभावित होगी। एक शोध के मुताबिक, तापमान में बढ़ोतरी के कारण अगर बर्फ ज्यादा तेजी से पिघली तो अंटार्कटिका का पानी कम नमक वाला और पतला हो जाएगा। इससे गहरे समुद्र के अंदर पानी की धाराओं का बहाव धीमा पड़ जाएगा। समुद्र के अंदर बहाव घटने पर 4,000 मीटर से अधिक गहराई वाले इलाकों में पानी का बहाव थम भी सकता है।
 वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर बढ़ते तापमान और पिघलती बर्फ के कारण समुद्र के अंदर पानी का बहाव थम गया तो दलदल जैसे हालात बन जाएंगे। इससे समुद्री जीवों पर बेहद बुरा असर पड़ेगा। पानी में ऑक्सीजन कम होने के साथ ही पोषक तत्व भी कम हो जाएंगे। इससे पानी में कार्बन डाई ऑक्साइड बढ़ जाएगी। यह दुनिया के लिए अलर्ट है। वैज्ञानिक ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण बढ़ते नकारात्मक असर को लेकर चिंता जता चुके हैं। बता दें कि ग्घ्लोबल वार्मिंग, हर साल बढ़ते वैश्विक तापमान, प्रदूषण और अंटार्कटिक की पिघलती बर्फ दुनियाभर के वैज्ञानिकों व पर्यावरणविदों के माथे पर पसीना ला रही है।

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