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शिवरात्रि के दिन प्रथम प्रहर की 07 बजकर 20 मिनट से शुरू होकर रात 09 बजकर 53 मिनट तक /15 Jul 2023 01:01 PM/    173 views

शिवरात्रि-कांवड़ के गंगाजल से शिवजलाभिषेक का महान पर्व

श्रावण कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की का आरंभ 15 जुलाई को रात 8 बजकर 32 पर हो रहा है। जिसका 16 जुलाई को चतुर्दशी तिथि पर समापन रात को 10 बजकर 7 मिनट पर होगा। भगवान शिव की पूजा निशीथ काल में ही की जाती है। इसलिए मासिक शिवरात्रि का व्रत 15 जुलाई को है। शिव उपासना चार प्रहर में करने का विधान है। इसलिए इस शिवरात्रि के दिन प्रथम प्रहर की पूजा शाम 07 बजकर 20 मिनट से शुरू होकर रात 09 बजकर 53 मिनट तक की जाएगी। इसके बाद द्वितीय प्रहर की पूजा रात को 09 बजकर 53 मिनट से आरंभ होकर मध्यरात्रि 26 मिनट तक की जाएगी। वहीं तृतीय प्रहर की पूजा- अर्चना रात को 12 बजकर 26 मिनट से सुबह 03 बजे तक की जाएगी। इसके बाद 03 बजे से शुरू होकर सुबह 05 बजकर 32 मिनट तक चतुर्थ प्रहर की पूजा की जाएगी। जबकि मासिक शिवरात्रि का व्रत पारण 16 जुलाई को होगा।इस दिन सुबह जल्दी स्नान करके, साफ सुथरे वस्त्र पहनकर पूजा घर में शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, भांग और नालियल अर्पित करें। साथ ही भगवान शिव का रुद्राभिषेक करें। शिव चालीसा और शिव स्तुति करें। दूध से बनी चीजों का भोग लगाएं।आज के दिन ही भोलेनाथ शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए यह दिन भोलेनाथ के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। जो लोग इस दिन व्रत रखते हैं, उन पर भगवान शिव की हमेशा कृपा बनी रहती है। वहीं इस दिन जो व्यक्ति सच्चे मन से व्रत रखकर शिवलिंग का शहद, गंगाजल, दूध और दही से अभिषेक करता है, उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।वस्तुतः एक परमपिता के रूप में, वही ईश्वर है और वही शिव है। एक मात्र शिव ही ब्रहमा,विष्णु और शकंर के भी रचियता है। शिव जीवन मरण से परे है। ज्योति बिन्दू स्वरूप है। वास्तव में शिव एक ऐसा शब्द है जिसके उच्चारण मात्र से परमात्मा की सुखद अनुभूति होने लगती है। शिव को कल्याणकारी तो सभी मानते है, साथ ही शिव ही सत्य है शिव ही सुन्दर है, यह भी सभी स्वीकारते है। परन्तु यदि मनुष्य को शिव का बोध हो जाए तो उसे जीवन मुक्ति का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। गीता में कहा गया है कि जब जब धर्म के मार्ग से लोग विचलित हो जातेहै,समाजमेंअनाचार,पापाचार ,अत्याचार,शोषण,क्रोध,वैमनस्य,आलस्य,लोभ,अहंकार,का मुकता,माया मोह बढ जाता है, तब तब ही परमात्मा को स्वयं आकर राह भटके लोगो को सन्मार्ग पर लाने की प्रेरणा का कार्य करना पडता है। ऐसा हर पाचं हजार साल में पुनरावृत होता है। पहले सतयुग,फिर त्रेता,फिर द्वापर,फिर कलियुग और फिर संगम युग तक की यात्रा इन पांच हजार वर्षाे में होती है। हांलाकि सतयुग में हर कोई पवित्र,सस्ंकारवान,चिन्तामुक्त और सुखमय होता है।परन्तु जैसे जैसे सतयुग से त्रेता और त्रेता से द्वापर तथा द्वापर से कलियुग तक का कालचक्र घूमता है। वैसे वैसे व्यक्ति रूप में मौजूद आत्मायें भी शान्त,पवित्र और सुखमय से अशान्त,दुषित और दुखमय हो जाती है। कलियुग को तो कहा ही गया है दुखों का काल। लेकिन जब कलियुग के अन्त में संगम युग से सतयुग के आगमन की घडी आती है तो यही वह समय जब परमात्मा स्वंय सतयुग की दुनिया बनाने के लिए आत्माओं को पवित्र और पावनता का स्वंय ज्ञान देते है और आत्माओं को सतयुग के काबिल बनाते है। समस्त देवी देवताओ में मात्र शिव ही ऐसे देव है जो देव के देव यानि महादेव है जिन्हे त्रिकालदर्शी भी कहा जाता है। परमात्मा शिव ही निराकारी और ज्योति स्वरूप है जिसे ज्योति बिन्दू रूप में स्वीकारा गया है। परमात्मा सर्व आत्माओं से न्यारा और प्यारा है जो देह से परे है जिसका जन्म मरण नही होता और जो परमधाम का वासी है 
और जो समस्त संसार का पोषक है। दुनियाभर में ज्योतिर्लिगं के रूप में परमात्मा शिव की पूजा अर्चना और साधना की जाती है। शिवलिंग को ही ज्योतिर्लिंग के रूप में परमात्मा का स्मृति स्वरूप माना गया है। संसार में सबसे पहले सोमनाथ के मन्दिर में हीरे कोहिनूर से बने शिवलिंग की स्थापना की गई थी। विभिन्न धर्माे में परमात्मा को इसी आकार रूप में मान्यता दी गई। तभी तो विश्व में न सिर्फ 12 ज्योर्तिलिगं परमात्मा के स्मृति स्वरूप में प्रसिद्ध है बल्कि हर शिवालयों में शिवलिगं प्रतिष्ठित होकर परमात्मा का भावपूर्ण स्मरण करा रहे है। वही ज्योतिरूप में धार्मिक स्थलों पर ज्योति अर्थात दीपक प्रज्जवलित कर परमात्मा के ज्योति स्वरूप की साधना की जाती है। शिव परमात्मा ऐसी परम शक्ति है,जिनसे देवताओं ने भी शक्ति प्राप्त की है। भारत के साथसाथमिश्र,यूनान,थाईलैण्ड,जापान,अमेरिका,जर्मनी,जैसे दुनियाभर के अनेक देशों ने परमात्मा शिव के अस्तित्व को स्वीकारा है। धार्मिक चित्रों में स्वंय श्रीराम,श्रीकृष्ण और शंकर भी भगवान शिव की आराधना  में ध्यान मग्न दिखाये गए है। जैसा कि पुराणों और धार्मिक ग्रन्थों में भी उल्लेख मिलता है। श्री राम ने जहां रामेश्वरम में शिव की पूजा की तो श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध से पूर्व शिव स्तुति की थी। इसी तरह शंकर को भी भगवान शिव में ध्यान लगाते देखे जाने के चित्र प्रदशित किये गए है। दरअसल शिव और शंकर दोनो अलग अलग है शिव परमपिता परमात्मा है तो ब्रहमा,विष्णु और महेश यानि शंकर उनके देव तभी तो भगवान शिव को देव का देव महादेव अर्थात परमपिता परमात्मा स्वीकारा गया है। ज्योति बिन्दू रूपी शिव ही अल्लाह अर्थात नूर ए इलाही 
है।वही लाईट आफ गोड है और वही सतनाम है। यानि नाम अलग अलग परन्तु पूरी कायनात का मालिक एक ही परम शक्ति है जो शिव है। सिर्फ भारत के धार्मिक ग्रन्थों और पुराणों में ही शिव के रूप में परमात्मा का उल्लेख नही है बल्कि दुनियाभर के लोग और यहूदी, ईसाई, मुस्लमान भी अपने अपने अंदाज में परमात्मा को ओम, अल्लाह, ओमेन के रूप में स्वीकारते है। सृष्टि की रचना की प्रक्रिया का चिंतन करे तो कहा जाता है कि सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर की आत्मा पानी पर डोलती थी और आदिकाल में परमात्मा ने ही आदम व हव्वा को बनाया जिनके द्वारा स्वर्ग की रचना की गई। चाहे शिव पुराण हो या मनुस्मृति या फिर अन्य 
धार्मिक ग्रन्थ हर एक में परमात्मा के वजूद को तेजस्वी रूप माना गया है। जिज्ञासा होती है कि अगर परमात्मा है तो वह कहां है ,क्या किसी ने परमात्मा से साक्षात किया है या फिर किसी को परमात्मा की कोई अनूठी अनुभूति हुई है। साथ ही यह भी सवाल उठता है कि आत्माये शरीर धारण करने से पहले कहा रहती है और शरीर छोडने पर कहा चली जाती है।इन सवालो का जवाब भी सहज ही उपलब्ध है। सृष्टि चक्र में तीन लोक होते है पहला स्थूल वतन,दूसरा सूक्ष्म वतन और तीसरा मूल वतन अर्थात परमधाम। स्थूल वतन  जिसमें हम निवास करते है पंाच तत्वों से मिलकर बना है। जिसमें आकाश पृथ्वी,वायु,अग्नि औरजल शामिल है। इसी स्थूल वतन को कर्म क्षेत्र भी कहा गया है। जहां जीवन मरण है और अपने अपने कर्म के अनुसार जीव फल भोगता है। इसके बाद सूक्ष्म वतन सूर्य, चांद और तारों के पार है जिसे ब्रहमपुरी,विष्णुपुरी और शंकरपुरी भी कहा जाता है। सूक्ष्म वतन के बाद मूल वतन है जिसे परमधाम कहा जाता है। यही वह स्थान है जहां परमात्मा निवास करते है। यही वह धाम है जहां सर्व आत्माओ का मूल धाम है। यानि आत्माओं का आवागमन इसी धाम से स्थूल लोक के लिए होता है। आत्माओं का जन्म होता है और परमात्मा का अवतरण होता है। यही आत्मा और परमात्मा में मुख्य अन्तर है। सबसे बडा अन्तर यह भी हैे कि आत्मा देह धारण करती है जबकि परमात्मा देह से परे है।परमात्मा निराकार है और परमात्मा ज्योर्ति बिन्दू रूप में सम्पूर्ण आत्माओं को प्रकाशमान करता है ,जिससे आत्मा पतित से पावन होकर सर्व सुख प्राप्त करती है।

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