Sat, Apr 27, 2024
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राजीव गांधी कि हस्तक्षेप से ही रामलला कि पुराने मंदिर कि दरवाजे पूजा-अर्चना कि लिए खोले गए थे /11 Jan 2024 01:42 PM/    55 views

मंदिर-मंदिर खेल रहे हैं जग वाले..

हमारे एक पुराने बजरंगी भाई हैं श्री जयभान सिंह पवैया। कहते हैं कि राम मंदिर की लड़ाई आजादी की लड़ाई से भी बड़ी लड़ाई है। जयभान को आजादी की लड़ाई का भान नहीं है लेकिन उनके पुरखों को शायद होगा। नहीं भी हो सकता, क्योंकि उनके नागपुरवंशी तो कभी आजादी की लड़ाई लड़े नही। उन्होंने तो केवल राम मंदिर की लड़ाई लड़ी है ,इसलिए मुमकिन है कि वे दोनों के बीच का फर्क नहीं जानते। बहरहाल देश में आजकल एक बड़ी आबादी और उसके नेता मंदिर-मंदिर खेल रहे हैं और बाकी के लोग उसे झेल रहे हैं। रामलला का मंदिर भले ही आधा-अधूरा है लेकिन उसका इस्तेमाल सियासत के लिए पूरा-पूरा किया जा रहा है। आजादी की लड़ाई में कोई मंदिर नहीं था,तब गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी भारत माता थी। तब भारत माता की गुलामी को खेल नहीं बनाया गया था। भारत माता की आजादी के आंदोलन में कामयाबी के बाद किसी चम्पत राय ने देश की जनता को आजादी के जश्न में शामिल होने के निमंत्रण नहीं बांटे थे, किसी से किसी ने ये भी नहीं कहा था की जश्न में शामिल होइए या न होइये। किसी ने इस जश्न के लिए पीले चावल भी नहीं बांटे थे। इसकी जरूरत ही नहीं थी। आजादी के जश्न और रामलला की प्राण -प्रतिष्ठा समारोह में जमीन-आसमान का अंर्त है ,लेकिन दुर्भाग्य आज के नेता और भक्तमंडल इस भेद को समझना नहीं चाहते। रामलला भी हैरान होंगे कि उन्हें ,उन्हीं के भक्तों ने एक तलवार की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। जो इस राजनीतिक जलसे में शामिल न हो,जो इस जलसे की धार्मिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाए उसे राम का वैरी घोषित किया जा रहा है। ये अधिकार रामभक्तों को किसने दिया है ? आगामी 22 जनवरी 2024 देश के इतिहास में वैसे ही एक ऐतिहासिक दिन होगा जैसे कि 06 दिसंबर 1992 का दिन था। एक तारीख में अधबने मंदिर में रामलला कि नए विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा की जा रही है और एक तारीख में यहां बनी एक इमारत को ध्वस्त किया गया था। जिस इमारत को ध्वस्त किया गया था उसमें कोई विग्रह नहीं था। रामभक्त इसे पांच सौ साल की लड़ाई का विजय घोष बता रहे हैं ,जबकि राम तो हजारों साल से अजेय है। उनके मंदिरों को बड़ी से बड़ी राज सत्ताएं नहीं मिटा सकें ,क्योंकि वे असंख्य भारतीयों कि मन में रहते है। वे हिन्दुओं के भी राम हैं,वे मुसलमानों कि भी राम है। यदि न होते तो मुस्लिम रचनाकार उनके भक्त कैसे होते ? बहरहाल बात मंदिर को तलवार बनाने की है ,बात मंदिर की तलवार से अपने राजनीतिक विरोधियों का खात्मा करने की है। देश कि चारों शंकराचार्यों ने रामलला कि विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को सियासी जलसा बनाने का विरोध करते हुए समारोह कि बहिष्कार का ऐलान किया तो भाजपा की ट्रोल आर्मी उन चारों कि पीछे लग गयी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और श्रीमती सोनिया गांधी ने प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में आने से इंकार किया तो इन्हें सनातन विरोधी घोषित कर दिया गया। राम कि ठेकेदार भूल गए कि श्रीमती सोनिया गांधी के पति और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी कि हस्तक्षेप से ही रामलला कि पुराने मंदिर कि दरवाजे पूजा-अर्चना कि लिए खोले गए थे ,तब कोई भाजपाई मैदान में न था। बहरहाल पूरे देश में, विदेश में राम कि भक्त इस बात से मुतमईन हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बन गया। लोग खुश हैं कि अयोध्या नया धार्मिक पर्यटन स्थल बन गया है। लोग खुश हैं कि वहां अंतरार्ष्ट्रीय हवाई अड्डा बिना मांगे बन गया है, हालाँकि वहां कोई पुष्पक उतरने वाला नहीं है। ,लेकिन लोग इस बात से दुखी भी हैं कि रामलला को एक राजनीतिक दल ने, एक तथाकथित सांस्कृतिक संगठन ने बंधुआ बना लिया है। नवनिर्मित राममंदिर कि बारे में संघ कि प्रचारक रह चुके कोई चम्पतराय कहते हैं कि राम मंदिर तो रामानंदी समर्प्दाय का है ,तो प्रश्न उठता है कि प्राण-प्रतिष्ठा समारोह कि निमत्रण पत्र चम्पत राय क्यों बाँट रहे हैं ? वे कौन हैं ? वे क्या रामानंदी समर्प्दाय कि शीर्ष गुरु हैं ? शंकराचार्य हैं ? शायद नहीं है। वे संघ की ,भाजपा की एक कठपुतली हैं ,उन्हें जैसा संघ और भाजपा चाहती है वैसा नचा लेती है। कायदे से उन्हें अब मंदिर से बाहर आ जाना चाहिए। लोग अयोध्या में तब से आ-जा रहे हैं जब देश में न कोई विश्व हिन्दू परिषद थी,न कोई आरएसएस था और न कोई भाजपा था। अयोध्या त्रेता में थी और आज भी है और कल भी रहेगी। लोग पहले की तरह यहां कल भी आएंगे ,उन्हें अयोध्या आने कि लिए किसी कि पीले चावलों की जरूरत नहीं है। पीले चावल बांटने वाले राम जी कि अभिभावक नहीं है। वे राम जी कि सेवक हो सकते हैं,भक्त हो सकते हैं, अनुयायी हो सकते हैं किन्तु ये अधिकार उन्हें राम जी ने किसी को नहीं दिया की कोई उनके असंख्य भक्तों को पीले चावल देकर अयोध्या आने को कहे। राम जी को पता है कि पीले चावल देकर कौन ,क्या उल्लू सीधा करना चाहता है ? राम जी को उनका मंदिर बनाकर देने का अहसान थोपने की कोशिश करने वाले बेंत कि पेड़ की तरह हैं। उनके हृदय में नफरत के साथ मूर्खता भरी हुई है और गोस्वामी तुलसी दास जी कह गए हैं कि मूर्ख हृदय न चेत ,जो गुरु मिलहि विरंच सम ,फूलहि-फरहिं न बेंत जदपि सुधा बरसहिं जलद। रामलला का भव्य -दिव्य मंदिर कलियुग का एक नायब शाहकार होगा,लेकिन इसकी नीव में देश भर के दो हजार से अधिक लोगों कि रक्तकण भी समाहित होंगे। भाजपा इन दिवंगतों को भी शहीद कहेगी ,लेकिन मै इन्हें निर्दाेषों का वध मानता हूँ। जो एक उन्माद में मारे गए। पुलिस की गोली से मारे गए या नफरत कोई आग में जलकर मारे गए। उन्हें श्रृद्धांजलि दी जाना चाहिए ,क्योंकि उन्हें एक ऐसी लड़ाई में शहादत देने को उकसाया गया जिसके पक्ष में शायद भगवान राम कभी नहीं रहे होंगे। राम को मंदिर की जरूरत थी ही नहीं ,वे तोउनके मन मंदिर में पहले से बसे हुए हैं जो बाल्मीक ने और तुलसीदास ने अपने ग्रंथों में उल्लेखित किये हैं। एक चौपाई मुझे भी याद है -निदरहिं सरित सिंधु सर भारी। रूप बिंदु जल होहिं सुखारीघ् तिन्ह कें हृदय सदन सुखदायक। बसहु बंधु सिय सह रघुनाय। कुल जमा सार ये है कि जो पीले चावल लेकर भी 22 जनवरी को अयोध्या जाने से रोके जा रहे हैं उन्हें हकीकत समझना चाहिए। इन पीले चावलों कि जरिये उन्हें रामलला नहीं माननीय नरेंद्र मोदी और माननीय अमित शाह बुला रहे है। ताकि आप उनका अहसान मानें और आगामी लोकसभा चुनाव में राम जी कि नाम पर उन्हें वोट देकर तीसरी बार सत्ता में वापस ले आएं ,क्योंकि इस समय उनकी जमीन खिसकी हुई है। राजनीति में साम-दाम ,दंड और भेद का इस्तेमाल करके भी वे देश की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे हैं और जबरन शंकराचार्यों से भी बड़े जगद्गुरु बनना चाहते है। जय सिया - राम सीता राम। 

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