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विपक्षी दलों की बैठक में 26 पार्टियां एकजुट हो गईं /05 Aug 2023 01:16 PM/    263 views

राहुल गांधी की सजा पर रोक से इंडिया को मिली संजीवनी

राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई पूरी नहीं हो जाती तब तक दोषसिद्धि व सजा पर रोक रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को अधिकतम सजा सुनाए जाने पर भी सवाल उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला राहुल गांधी, कांग्रेस पार्टी और विपक्षी गठबंधन इंडिया के लिए भी कई मायनों में संजीवनी देना वाला है।सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के साथ ही राहुल गांधी के लिए संसद के दरवाजे विधिक रूप से खुल गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ ही राहुल की अयोग्यता भी समाप्त हो गई है और लोकसभा सचिवालय से सदस्यता बहाली होनी ही है। राहुल को संसद की सदस्यता के अयोग्य करार दिए जाने के बाद अगर वायनाड सीट पर उपचुनाव हो गए होते तब उनकी सदस्यता बहाल नहीं हो पाती। वायनाड में अभी तक उपचुनाव नहीं हुए हैं,इसलिए राहुल गांधी ही संसद सदस्य बने रहेंगे।राहुल गांधी को संसद की सदस्यता समाप्त होने के बाद दिल्ली में अपना आवास भी खाली करना पड़ा था।राहुल गांधी के घर खाली करते समय कांग्रेस नेताओं ने मेरा घर राहुल गांधी का घर मुहिम छेड़ दी थी। अब संसद सदस्यता बहाल होने पर राहुल गांधी को दिल्ली में फिर से घर मिलेगा।इस फैंसले पर कांग्रेस में जश्न का माहौल है।सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के साथ ही राहुल गांधी के 2024 का चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर छाए बादल भी छंट गए हैं।सुप्रीम कोर्ट से भी अगर राहुल को सजा और दोषी करार दिए जाने के निचली अदालत के फैसले पर रोक नहीं लगाई होती तो वे 2024 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाते। राहुल गांधी अब न सिर्फ संसद में लौटेंगे बल्कि 2024 के चुनाव में बतौर उम्मीदवार नजर आएंगे।
मोदी सरनेम केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राहुल गांधी के सियासी करियर को संजीवनी मिल गई है। अब अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान भी राहुल गांधी सदन में मौजूद रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस पार्टी मोदी सरकार के खिलाफ और आक्रामक हो सकती है। 26 विपक्षी दलों के नए गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस यानि इंडिया के लिए भी राहुल पर आया फैसला संजीवनी देगा ।
करीब आधे भारतीयों की अपनी राय दी है कि विपक्षी दलों ने सन 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए 26 विपक्षी दलों के गठबंधन को जो इंडिया नाम दिया है वह विपक्ष की ब्रांडिंग का सही फैंसला है।इस सर्वे में पूछा गया कि क्या विपक्ष का अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखने का फैसला सही है? जिसपर 48.6 प्रतिशत लोगों का कहना है कि विपक्ष का यह निर्णय एकदम सही है, जबकि 38.8 प्रतिशत लोगो का कहना है कि विपक्ष ने इंडिया नाम नही रखना चाहिए था।इस सर्वे में 2,664 लोगों से सर्वे टीम द्वारा सवाल पुछा गया था। विपक्षी दलों का समर्थन करने वाले और एनडीए का समर्थन करने वाले लोगों के बीच स्पष्ट मतभेद है,लेकिन विपक्ष का समर्थन करने वालो की संख्या कही ज्यादा है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए से लड़ने के लिए विपक्षी दलों का गठबंधन बनाने के लिए नेताओं के कई महीनों से प्रयास चल रहे थे।आपसी सहमति बनाने के लिए विपक्षी दलों के नेताओं की लंबी बातचीत चली, क्योंकि इनमें से कई विपक्षी दल कुछ राज्यों में एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी भी हैं।जैसे आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दिल्ली के साथ-साथ पंजाब में भी आपस मे प्रतिद्वंद्वी हैं। इसी तरह, कांग्रेस और वामपंथी दल केरल में प्रतिद्वंद्वी हैं, जबकि वे पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ गठबंधन के रूप में लड़ते हैं। फिर भी संयुक्त विपक्ष की पहली सफल बैठक पटना में हुई , जिसमें 16 पार्टियां शामिल हुई थीं। जबकि बेंगलुरु में हुई  विपक्षी दलों की बैठक में 26 पार्टियां एकजुट हो गईं। इस बैठक में सन 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी व उसकी सहयोगी पार्टियों के गठबंधन एनडीए के विकल्प के रूप में आईएनडीआईए यानी इंडिया नामकरण कर विपक्षी एकता पर मुहर लगाई गई। संयुक्त विपक्ष की तीसरी बैठक मुंबई में निश्चित की गई है। विपक्षी दलों का प्राथमिक उद्देश्य करीब 400 लोकसभा सीटों पर बीजेपी के खिलाफ साझा उम्मीदवार खड़ा करना है, ताकि विपक्ष के वोट बंटने न पाएं। विपक्षी दलों की तीसरी बड़ी बैठक अब मुंबई में होने जा रही है।यह बैठक 15 अगस्त के बाद या फिर सितंबर के प्रथम सप्ताह में हो सकती है। बैठक की तारीख अभी निश्चित नहीं हुई है। लेकिन,तीसरी बैठक की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं।जिसमे विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव अलायंस यानि इंडिया में शामिल सभी दलों के नेताओं को आमंत्रित किया जा रहा है और उनसे समय मांगा जा रहा है। विपक्ष का कहना है कि इस बैठक में विपक्षी दलों के करीब 100 बड़े नेता भाग लेंगे। इससे पहले बेंगलुरु में विपक्षी दलों की बैठक में 26 पार्टियों के नेता शामिल हुए थे। यह पहली बार है कि विपक्षी दलों की बैठक ऐसे राज्य में होगी, जहां इंडिया यानि विपक्षी गठबंधन में शामिल कोई दल सत्ता में नहीं है। विपक्षी दलों की पहली बैठक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता दल यूनाइटेड ने पटना में आयोजित की थी, दूसरी बैठक बेंगलुरु में हुई थी, इसकी मेजबानी कांग्रेस ने की थी। अब मुंबई में बैठक की मेजबानी शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी के शरद पवार गुट और कांग्रेस द्वारा संयुक्त रूप से किए जाने की संभावना है।महाविकास अघाड़ी नेता 15 अगस्त के बाद महाराष्ट्र में दौरा करेंगे। राज्य में मौसम ठीक होने पर शरद पवार और उद्धव ठाकरे भी दौरा करेंगे। कांग्रेस नेताओं ने बैठक के लिए सितंबर के पहले सप्ताह का सुझाव दिया है, लेकिन तारीखें अभी तय नहीं हुई हैं। कांग्रेस और एनसीपी नेताओं ने यशवंतराव चव्हाण केंद्र में उक्त बाबत एक बैठक की है। इस बैठक में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले, विधायक कांग्रेस दल के नेता बालासाहेब थोराट, पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल, प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष पूर्व मंत्री नसीम खान, शशिकांत शिंदे, संग्राम थोपटे, ए. रोहित पवार, सुनील भुसारा और अन्य उपस्थित रहे।राज्य में महाविकास अघाड़ी एक मजबूत संगठन है।  शरद पवार, उद्धव ठाकरे और कांग्रेस पार्टी भी राज्य भर में बैठकें करेगी। इस बैठक में टिकट बंटवारे को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई। लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी चार-पांच बैठकें कर चुकी है।नाना पटोले ने कहा कि जब तीनों दल एक साथ बैठेंगे और चर्चा करेंगे तो सीट आवंटन और उम्मीदवार चयन पर चर्चा होगी।कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि गठबंधन के संयोजक की नियुक्ति के लिए 11 सदस्यीय समिति बनाई जाएगी।खड़गे ने अलग-अलग मुद्दों के समाधान के लिए विशिष्ट समितियों के गठन के साथ-साथ चुनावी अभियान प्रबंधन के लिए दिल्ली में एक कार्यालय बनाए जाने का ऐलान किया है। उन्होंने राज्य स्तर पर कुछ सदस्यों के बीच मतभेदों को स्वीकार किया था, लेकिन कहा था कि ये मतभेद वैचारिक नहीं है। लोगों की भलाई के लिए इन्हें दूर किया जा सकता है।2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को हराने के लिए विपक्षी मोर्चा इंडिया नाम से अब लामबंदी में जुटा है।वही  विपक्षी गठबंधन इंडिया के 26 राजनीतिक दलों ने हिंसा प्रभावित मणिपुर का दौरा कर वहां के हालात देश के सामने लाने का मन बना लिया है। शीघ्र ही विपक्ष का गठबंधन हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा करेगा।  फिलहाल दौरे की तारीख तय नहीं की गई है, लेकिन यह फैसला कर लिया गया है कि प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व ऐसे राजनीतिक दल करेंगे, जिनकी मणिपुर में अच्छी-खासी पकड़ है। विपक्षी दलों के नए संगठन इंडिया यानि इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस  की टैगलाइन जीतेगा भारत रखी गई।इंडिया गठबंधन में कांग्रेस, टीएमसी, शिवसेना (उद्धव गुट), एनसीपी (शरद पवार गुट), सीपीआई, सीपीआईएम, जदयू, डीएमके, आम आदमी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, आरएलडी, सीपीआई (एम एल), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (एम), मनीथानेया मक्कल काची (एम एम के), एमडीएमके, वीसीके, आरएसपी, केरला कांग्रेस, केएमडीके, एआईएफबी, अपना दल कमेरावादी शामिल हैं। लेकिन जिन अधिक लोकसभा सीटों वाले राज्यों से केंद्र की सरकार बनती है, वहां पर नीतीश कुमार को छोड़कर अन्य किसी नेता या उसकी पार्टी का 5 प्रतिशत भी प्रभाव नहीं है।
 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश, 40 सीटों वाले बिहार, 29 सीटों वाले मध्यप्रदेश, 25 सीटों वाले राजस्थान, 14 सीटों वाले झारखंड, 11 सीटों वाले छत्तीगढ़ और 5 सीटों वाले उत्तराखंड राज्य में इंडिया यानि विपक्षी गठबंधन फिलहाल सीटों की दृष्टि से बेहद कमजोर है। बीजेपी ने इन सभी राज्यों में पीएम मोदी के दम पर परचम लहराया था। यहां तक की बीजेपी ने तेलंगाना में भी सेंध लगाकर पिछले चुनाव में 4 सीटें जीत ली थीं। इसके अलावा, तेलंगाना में केसीआर अलग राह पर हैं तो वह भी विपक्षी गठबंधन के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं।अगर 2019 के लोकसभा चुनाव पर नजर डाली जाए तो भाजपा प्रभावित राज्यों में बीजेपी ने कुल 204 सीटों में 156 सीटें जीती हुई हैं।हालांकि बिहार को छोड़ दें तो कहीं भी बीजेपी का वोट परसेंट 50 या उससे अधिक ही रहा है।इसमें राजग के गठबंधन के साथी  शामिल नही हैं।नीतीश कुमार के जदयू ने बिहार में 16 सीटें हासिल की थीं, जबकि रामविलास पासवान की लोकजन शक्ति पार्टी ने 6 सीटें जीती थीं। उत्तर प्रदेश में अपना दल को 2 सीटें मिली थीं।2014 के लोकसभा चुनाव से तुलना की जाए तो बीजेपी का प्रदर्शन सीटों और वोट परसेंट दोनों में मामले में 2019 में सुधरा था।जबकि उत्तर प्रदेश में 2014 की तुलना में सीटों में गिरावट आई थी। 2014 में बीजेपी को 71 सीटें मिली थीं, जबकि 2019 में 62 मिलीं थी,यहां बीजेपी को 9 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा था।
इंडिया गठबंधन में कुल 26 दल शामिल हैं।जिसे देखते हुए बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए ने भी घटक दलों की संख्या बढ़ाते हुए 38 कर दी है। इंडिया और एनडीए दोनों में कई ऐसे दल भी शामिल हैं जिनके पास एक भी लोकसभा सीट नहीं है।इंडिया गठबंधन में शामिल 5 ऐसे दल हैं जिनका एक भी सांसद नहीं है। टीएमसी के सांसद डेरेक ओब्रायन की मानें तो दिल्ली में एनडीए की ओर से मीटिंग में बुलाए गए 30 दलों में से 8 ऐसे थे जिनका एक भी सांसद नहीं है। इसके अलावा 9 पार्टियां ऐसी थीं जिनका सिर्फ एक सांसद है, जबकि तीन पार्टियों के लोकसभा में मात्र 2 सांसद हैं।इसके बावजूद अपने क्षेत्र में उनका वोट बैंक होने के नाते उन्हें गठबंधन में शामिल किया गया है। साथ ही ममता बनर्जी की सारी ताकत पश्चिम बंगाल तक  सीमित है। उसमें भी बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में 40 प्रतिशत से अधिक वोट बैंक की सेंध लगा दी थी। हालांकि पंचायत चुनाव में ममता की टीएमसी का वोट बैंक 51 प्रतिशत तक पहुंच गया । ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने पिछले लोकसभा चुनाव में 42 में से सिर्फ 24 सीटें प्राप्त की थीं, जबकि बीजेपी ने 18 सीटें हासिल की थीं।इसलिए पश्चिम बंगाल में इंडिया गठबंधन भाजपा पर भारी कहा जा सकता है।
कांग्रेस की उत्तराखंड इकाई के द्वारा राज्य में मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाते हुए की गई ‘स्वाभिमान न्याय यात्रा का समापन किया। इस यात्रा का नेतृत्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करण माहरा ने किया ।उत्तराखंड में कांग्रेस का मार्च, चुनावी तैयारियों को धार देने के लिए निकाला गया। कांग्रेस ने अंकिता भंडारी हत्या  मामले में मृतका के लिए न्याय की मांग की और अग्निवीर भर्ती योजना को भी वापस लिए जाने की मांग को लेकर विरोध मार्च निकाला ।विरोध मार्च प्रदेश भर में 150 किलोमीटर से अधिक की यात्रा पूरी करने के बाद कोटद्वार  में समाप्त हुआ।
‘स्वाभिमान न्याय यात्रा की शुरूआत 17 जुलाई को पौड़ी से हुई थी और पांच जिलों से गुजरने के बाद  इसका समापन हुआ। छह दिवसीय इस यात्रा के दौरान दो जनसभाएं और 10 नुक्कड़ बैठकें की गयी।उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता भुवन चंद्र खंडूरी के कांग्रेसी पुत्र मनीष खंडूरी ने कहा कि यात्रा का मकसद अंकिता भंडारी के लिए न्याय, अग्निवीर योजना को वापस लेने तथा भर्तियों में हुए घोटलों के मुद्दों को उठाना है और इस यात्रा को लोगों का जबरदस्त समर्थन मिला है।
पौड़ी के वनंत्रा रिजॉर्ट में अंकिता की पिछले साल सितंबर में रिजॉर्ट संचालक पुलकित आर्य ने अपने दो कर्मचारियों के साथ मिलकर कथित तौर पर हत्या कर दी थी। आरोपी जेल में हैं और मामले में आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया गया है लेकिन विपक्ष लगातार जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहा है। अंकित भंडारी केस में बीजेपी नेता के बेटे समेत तीन आरोपी हैं। यह मुद्दा अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।बदली परिस्थितियों में ज्यो ज्यो लोकसभा चुनाव निकट आ रहे है ,मोदी सरकार के विरुद्ध असंतोष और विपक्ष के प्रति रुझान बढ़ता जा रहा है जिसमे सुप्रीम कोर्ट के इस फैंसले ने एनडीए के मुकाबले इंडिया को संजीवनी दे दी है।
 

 

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