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राजनेता अपनी इंसानियत भूल गये /15 Aug 2023 01:40 PM/    79 views

नही चाहिए ऐसी आजादी जहां बहु-बेटियां सुरक्षित न हो

देश को आजादी तो मिली लेकिन यह आजादी देश के भले आदमियों के लिए नही बल्कि उन लोगो के लिए बनकर रह गई,जो लोकतांत्रिक व्यवस्था को कुचलने में लगे है। जिसका ताजा उदाहरण मणिपुर की घटना कही जा सकती है।सच बात यह है कि अंग्रेजों से तो भारत को 15 अगस्त सन 1947 में ही आज़ादी मिल गई थी। लेकिन भूख,सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा से लेकर अराजक तत्वों से आज तक भी हम आज़ाद नही हो पाए है। नेताओं व असामाजिक तत्वों का निजी स्वार्थ के लिए लोकतंत्र को बार बार कुचलना और नोकरशाहो के अंग्रेजियत व्यवहार ने आज़ादी के अर्थ ही बदल दिए है। आज आज़ादी भले आदमियों के बजाए गद्दारों,माफियाओं,भृष्ट लोगो, अपराधियों को मिली हुई है। जिस आजादी की परिकल्पना हमारे आजादी के सिपाहियों ने की थी ,वह आजादी आज तक भी आम आदमी को नही मिल पाई है।देश मे सबसे बदतर हालत उस किसान- मजदूर की है। जिसकी मेहनत के बल पर अन्न पैदा होता है और हमारा पेट भरता है। उस स्त्री शक्ति की है,जिसे हवस का भेड़ियों ने सार्वजनिक रूप से बार बार शोषित व अपमानित करने की कोशिश की।सन 1947  में हमे अंग्रेजों से तो आजादी मिल गई। परन्तु उनकी जगह भारतीय देशी अंग्रेज आम आदमी पर हावी हो गए।जिस कारण अमीर ओर अधिक अमीर जबकि गरीब ओर अधिक गरीब होता चला गया।आज आम लोग रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे है।देश आज   अपनी आर्थिक आजादी के लिए तरस रहा है। स्वयं को किसान मजदूरों का मसीहा बताने वाली केन्द्र व कुछ राज्य सरकारों द्वारा किसान व मजदूरों की ही  अनदेखी की जा रही है।तभी तो किसान ,मजदूर ही नही व्यापारी और युवा बेरोजगार तक आत्म हत्या करने को मजबूर हो रहे है।
 देश की सरकारो ने किसान, मजदूरों ,व्यापारियों, नोकरी पेशा लोगो को खुशहाली की आजादी दिलाने के बजाए केन्द्र व राज्य की अधिकांश सरकारे अपनी सत्ता की कुर्सी बचाये रखने के लिए या फिर दलगत स्वार्थ के चलते निर्वाचित सरकार को 
नेस्तनाबूद करने के लिए दलबदल की धटिया राजनीति को हवा दे रहे है और प्रलोभन की राजनीति कराकर लोकतन्त्र के साथ ऐसा खिलवाड कर रहे है। जो देश के लिए ही नही, समाज के लिए भी हानिकारक है। एक तरफ देश का आम आदमी अपनी रोजी रोटी के संकट से जूझ रहा है वही दूसरी तरफ आम जनता को राहत के बजाए  सत्तारूढ़ लोग दलबदल को बढ़ावा देकर लोकतन्त्र की सुरक्षा को लेकर ही खतरे में डाल रहे है।  देश के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जो कभी एक के बदले दस सिर काटकर लाने की चुनौती अपनी चुनावी जनसभाओं में देते थक नही रहे थे,जो हर भारतीय के खाते में काले धन को बाहर लाकर 15 -लाख रुपये देने की बात करते थे, वे प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर रहते हुए ऐसा कुछ नही कर पाये जिसपर गर्व किया जा सके। स्वतन्त्रता दिवस व गणतन्त्र  दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्वाे को छोडकर राष्टृभक्तों के बारे में चर्चा करने का समय भी किसी के पास नही है। जिन शहीदो की वजह से आज हम कहने को आजाद है, उन्हे सम्मान देने की जब बारी आती है तो हम चुप्पी साध जाते है। जो स्वतन्त्रता सेनानी जीवित बचे है, उन्हे अफसोस होता है आज की आजादी को देखकर। एक ऐसी आजादी जो अराजक तत्वों को मिली हुई है। एक ऐसी आजादी जो माफियाओं को मिली हुई है। एक ऐसी आजादी जो देश के गददारों, भ्रष्टाचारियों, आतंकवादियों, अलगाववादियों, फिर कापरस्तियो, साम्प्रदायिक ताकतो व दलबदलुओ को मिली हुई है। चाहे देश में लागू कानून की खामी हो या राजनीति काअपराधीकरण व व्यवसायिकरण, इन्ही सबके के कारण देश बद से बदतर हालात से जुझ रहा है। देश में वोट की राजनीति के चलते बढती जनसंख्या,जाति के नाम पर बटता समाज और बेरोजगारी के नाम पर अपराधिक गलियारों में भटकते युवाओं के कारण भारत आगे बढने के बजाए पीछे जा रहा है। जिसकी चिन्ता किसी को नही है। जो बेहद चिंताजनक है।
आजादी का स्वर्णिम इतिहास
सन 1822 से शुरू होकर सन 1824 तक चला हरिद्वार का कुंजा बहादुरपुर गदर व सन 1857 की क्रांति से लेकर सन 1942 की अगस्त जनक्रांति तक देश के क्रांतिकारियों ने स्वाधीनता की लड़ाई में बढ़-चढ़कर सहभागिता की थी। सन 1824 में राजा विजय सिंह ,उनके सेनापति कल्याण सिंह की शहादत व एक ही दिन में 152 भारतीय विद्रोहियों को रुड़की के सुनहरा में पेड़ से लटककर दी गई फांसी, सन 1857 की क्रांति में मौलवी अहमद उल्ला शाह और नौ अगस्त सन1925 को हुए काकोरी कांड में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह ने अपना नाम अमर शहीदों में शामिल कराकर  इतिहास के पन्नों में दर्ज कराया था, वहीं नौ अगस्त सन 1942 को महात्मा गांधी द्वारा छेड़े गए अंग्रेजो भारत छोड़ो अभियान में तमाम बुजुर्गों और किशोरों ने देश का झंडा ऊंचा करते हुए अंग्रेजों से लोहा लिया और उनकी चुनौतियों को स्वीकारते हुए जेलें भरीं।इसी अंग्रेजों भारत छोड़ो जनआंदोलन में हरिद्वार में शहीद हुए 17 वर्षीय जगदीश प्रसाद वत्स के बलिदान को नही भुलाया जा सकता।स्वतंत्रता के इतिहास पर नज़र डालें तो सन 1929 लाहौर सत्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने देश मे पूर्ण स्वराज घोषणा की थी और 26 जनवरी के दिन को गणतंत्र दिवस  घोषित किया था। कांग्रेस ने भारत के लोगों से सविनय अवज्ञा करने के लिए स्वयं प्रतिज्ञा करने व पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति तक समय-समय पर जारी किए गए कांग्रेस के निर्देशों का पालन करने के लिए कहा था, कांग्रेस के इसी निर्देशानुसार आमजन 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाते थे। स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन भारतीय नागरिकों के बीच राष्ट्रवादी ईधन झोंकने के लिये किया गया व स्वतंत्रता देने पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार को मजबूर करने के लिए भी किया गया।  कांग्रेस ने सन 1930 और सन 1950 के बीच 26 जनवरी के दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया था। इस दिवस पर लोग  स्वतंत्रता की शपथ लेते थे। जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में इस तथ्य का उल्लेख किया है। उनके शब्दो मे, ऐसी बैठकें किसी भी भाषण या उपदेश के बिना, शांतिपूर्ण व गंभीर होती थीं। महात्मा गांधी ने कहा कि इस दिवस पर बैठकों के अलावा,  कुछ रचनात्मक काम करने जैसे कताई कातना या हिंदुओं और मुसलमानों का पुनर्मिलन या निषेध काम, या अछूतों की सेवा आदि सुझाव दिए थे।सन 1947 में वास्तविक आजादी के बाद भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को प्रभाव में आया, तब से 26 जनवरी के दिन को स्वतंत्रता दिवस के बजाए गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। आजादी के जश्न में
महात्मा गांधी आज़ादी के दिन दिल्ली से हज़ारों किलोमीटर दूर बंगाल के नोआखली में थे, जहां वे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए अनशन कर रहे थे। जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को पत्र भेजा था कि , 15 अगस्त हमारा पहला स्वाधीनता दिवस होगा।आप राष्ट्रपिता हैं। इसमें आपका शामिल होना बहुत जरूरी है , इसलिए अपना आशीर्वाद दें।गांधी ने इस पत्र का जवाब भिजवाया, जब कलकत्ते में हिंदु-मुस्लिम एक दूसरे की जान ले रहे हैं, ऐसे में मैं जश्न मनाने के लिए कैसे आ सकता हूं।मैं दंगा रोकने के लिए अपनी जान दे दूंगा।आजादी मिलने पर 16 अगस्त, सन1947 को लाल किले से पहली बार प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने झंडा फहराया।जवाहर लाल नेहरू ने अपना ऐतिहासिक भाषण ट्रिस्ट विद डेस्टनी 14 अगस्त की मध्यरात्रि को वायसराय लॉज से दिया था जो अब मौजूदा राष्ट्रपति भवन है।उस समय तक जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री नहीं बने थे।इस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना था।15 अगस्त, सन 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने अपने कार्यालय में पूरे दिन काम किया था। दोपहर में नेहरू जी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल की सूची सौंपी और बाद में इंडिया गेट के पास प्रिसेंज गार्डेन में एक सभा को संबोधित किया।भले ही अब हर स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय प्रधानमंत्री लाल किले से झंडा फहराते हैं। लेकिन 15 अगस्त, सन 1947 को ऐसा नहीं हुआ था।लोकसभा सचिवालय के एक शोध पत्र के मुताबिक  पंडित नेहरू  ने 16 अगस्त, सन1947 को लाल किले से झंडा फहराया था।भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के प्रेस सचिव कैंपबेल जॉनसन के मुताबिक़ मित्र देश की सेना के सामने जापान के समर्पण की दूसरी वर्षगांठ 15 अगस्त को पड़ रही थी, इसी दिन भारत को आज़ाद करने का फ़ैसला हुआ था।15 अगस्त सन 1947 तक भारत और पाकिस्तान के बीच सीमाओ का निर्धारण नहीं हुआ था।इसका फ़ैसला 17 अगस्त को रेडक्लिफ लाइन की घोषणा से हुआ।भारत 15 अगस्त सन 1947 को आज़ाद जरूर हो गया था, लेकिन उस समय तक उसका अपना कोई राष्ट्र गान नहीं था। रवींद्रनाथ टैगोर जन-गण-मन सन 1911 में ही लिख चुके थे, लेकिन यह राष्ट्रगान सन 1950 में ही बन पाया।15 अगस्त भारत के अलावा तीन अन्य देशों का भी स्वतंत्रता दिवस है। दक्षिण कोरिया जापान से 15 अगस्त सन 1945 को आज़ाद हुआ था। ब्रिटेन से बहरीन 15 अगस्त सन1971 को आज़ाद हुआ और फ्रांस से कांगो 15 अगस्त सन 1960 को स्वतंत्र हुआ था।इसलिए दुनिया भर में जहां 15 अगस्त महत्व है,वही भारतीय लोकतंत्र के लिए 15 अगस्त  का दिन बेहद शुभ है,क्योंकि इसी दिन देश को आजादी की खुली हवा में सांस लेने का अवसर कड़े संघर्षों के बाद मिला ।जिसकी एक बड़ी कीमत असंख्य देशभक्तों की शहादत से भी चुकानी पड़ी।

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