Tue, Apr 30, 2024
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शुरुआती दिनों में, मैं तो शांत रहने की कोशिश करता था-वकार /04 Apr 2024 12:57 PM/    21 views

वकार शेख तो डरे हुए थे भूख-प्यास से

गर्मी के मौसम में रोजा रखना कोई हंसी खेल नहीं होता है, जब भूख-प्यास लगती है तो अच्छे-अच्छे बोल पड़ते हैं। वैसे वकार शेख तो यही कहते हैं कि रोजे का मतलब कुछ भी नहीं खाना और ज्यादा बात भी नहीं करना होता है। क्योंकि उन्हें डर सताने लगता कि भूख-प्यास लग गई तो क्या करेंगे। वकौल वकार, मैं तब इसी फिक्र में रहता था कि यदि मैं बहुत अधिक बोलूं या बात करूंगा या ज्यादा खेलूंगा तो मुझे बहुत ज्यादा प्यास लगेगी और जब मैं पानी नहीं पी पाऊंगा। तब क्या होगा। ऐसे में वकार कहते हैं कि रोजे के उन शुरुआती दिनों में, मैं तो शांत रहने की कोशिश करता था और प्यास लगने के डर से खेलता-कूदता भी नहीं था। वो याद करते हुए बतलाते हैं कि मुझे याद है उस दिन मेरी मां ने खास इफ्तारी बनाई थी। रमजान के रोजे रखना वास्तव में चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर शुरुआती दिनों के दौरान। अब हाल ही में अनुपमा की शूटिंग चल रही थी और रमजान शुरु हो गए। रोजा रख कर हमें तीन गानों के साथ एक डांस सीक्वेंस करना पड़ गया। दोपहर के दो-ढाई बजे के आसपास, भयानक सिरदर्द और गर्दन में अकड़न महसूस होने लगी। ऐसा लगा जैसे किसी ने सिर पर भारी चुंबक रख दिया हो। तब समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, क्योंकि ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था, लेकिन शूटिंग जारी रखी और आखिरकार, सिरदर्द कम हो गया। इसके बाद इफ्तार में दवा ली तो गर्दन का दर्द भी जाता रहा।

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