सोनिया शर्मा
नई दिल्ली। क्या संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पेश किए जा सकते हैं? ये सवाल इसलिए खड़ा हो चुका है क्योंकि कुछ दिनों पहले देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने महिला आरक्षण बिल को लेकर एक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि वह दिन अब दूर नहीं है, जब देश के संसद और विधानसभा में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व होगा।
वहीं, मंगलवार को भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) पार्टी की एमएलसी ठींतंज त्ंेीजतं ैंउपजीप (ठत्ै) डस्ब् ज्ञ ज्ञंअपजीं के कविता ने मंगलवार को टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी सहित 47 राजनीतिक दलों के नेताओं को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने महिला आरक्षण बिल पर सभी राजनीतिक दलों से सभी मतभेदों को दूर कर एक साथ होकर इस बिल को संसद (लोकसभा) में पारित करने का आह्वान किया है। उन्होंने इस पत्र में लिखा है कि आज के वक्त भारतीय राजनीति और खासकर चुनाव में महिलाओं की भागीदारी की ज्यादा से ज्यादा जरूरत है। उन्होंने बताया कि फिलहाल देश में 14 लाख से ज्यादा महिलाएं राजनीतिक दलों के साथ जुड़े हैं और सभी देश की सेवा कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, डीएमके के एमके स्टालिन, एनसीपी के शरद पवार, कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खरगे, वाईएसआरसीपी के जगन मोहन रेड्डी सहित कई राजनीतिक दलों के नेताओं को उन्होंने पत्र लिखा है।
कविता ने आगे लिखा,ष्संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का मुद्दा अत्यंत महत्वपूर्ण है और मैं सभी राजनीतिक दलों से हाथ जोड़कर अनुरोध करता हूं कि वे इस मुद्दे को उठाएं और राजनीतिक पक्षपात से ऊपर उठें। यह वर्तमान सरकार के पास राज्यसभा में पर्याप्त बहुमत नहीं है, लेकिन महिला आरक्षण बिल पहले ही राज्यसभा में पारित हो चुका है। इसलिए उन्हें बस इसे लोकसभा में रखना होगा और महिला आरक्षण बिल देना होगा। इससे पहले, वह महिला आरक्षण बिल को पेश करने और पारित करने की मांग को लेकर मार्च में भूख हड़ताल पर बैठी थीं और बिल की मांग को बढ़ाने के लिए भारत भर में राजनीतिक दलों और नागरिक समाज संगठनों के साथ बातचीत कर रही थीं।
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने गुरुवार को 18-22 सितंबर तक संसद के पांच दिवसीय विशेष सत्र के बारे में जानकारी दी। हालाँकि, विशेष सत्र का एजेंडा अभी तक सामने नहीं आया है। यह सत्र नए संसद में चलेगा।
महिला आरक्षण बिल संसद में पेश किया गया वह बिल है, जिसके पारित होने से संसद में महिलाओं की भागीदारी 33 प्रतिशत सुनिश्चित हो जाएगी। गौरतलब है कि इस बिल को पहले भी कई बार संसद में प्रस्तुत किया जा चुका है और राज्यसभा से ये बिल पास हो चुका है। 9 मार्च साल 2010 में कांग्रेस ने बीजेपी, जेडीयू और वामपंथी दलों के सपोर्ट से राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल भारी बहुमत से पारित कराया। हालांकि, लोकसभा ने कभी भी बिल पास नहीं हो सका।