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साहू समाज की आराध्य भक्त शिरोमणी माँ कर्मा देवी /06 Apr 2024 05:27 PM/    9 views

भक्त और भगवान का अनोखा रिश्ता

माँ कर्मा की 1008वीं जयंती पर विशेष
साहू समाज की आराध्य भक्त शिरोमणी माँ कर्मा की जयंतिया सम्पूर्ण देश में बहुत ही श्रद्धा व हर्षो उल्लास के साथ मनाई जाती है। इस वर्ष उनकी 1008वीं जयन्ती पर उनकी प्रभु भक्ति व समाज को गौरांवित करने वाले चमत्कारों का उल्लेख कर उन्हें प्रणाम कर रहे है।
कर्मा कर्म प्रबोधनी भक्तिमती सुख मूल,
अनुराग के फूल की, माता करें कबूल । कीर्ति कलश अवधारिणी, धवल प्रेम आयाम,
कांति-शन्ति की प्रणयनी, माता तुम्हे प्रणाम ।।
भक्त और भगवान का अनोखा नाता है। इस पावन नाते में इतना आकर्षण है कि तीनों लोकों के अधिपति भी भक्त की आराधना से खिचे चले आते है। भक्त प्रहलाद, बालक ध्रुव, मीराबाई, सूरदास जी समेत अन्य भक्तों ने भी अपनी त्याग तपस्या के बल पर भक्ति की इस शक्ति को सिद्ध किया है। माँ कर्मा देवी भी इन्हीं में से एक है जिन्होंने अपनी भक्ति के तपोवल का उपयोग जगत कल्याण के लिए किया व प्रभु दर्शन कर जनमानस के लिये प्रभु भक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। समस्त साहू समाज उनके कृतित्व से कृत कृत्य हुआ।
साहू समाज को पहचान देने वाली भक्त शिरोमणी माँ कर्मा तो आदि शक्ति का रूप थी उन्होंने मानव तन धारण कर साहू समाज में जन्म लिया और साहू समाज में आये कठिन संकट हाथी की खुजली को मिटाने के लिए तेल कुंड को भरकर साहू जाति का उद्धार किया जो मानव सार्मथ्य से बाहर था। उनकी भक्ति में इतना वात्सल्य था कि भगवान श्री जगदीश स्वामी को जगन्नाथ पुरी मंदिर से बाहर आकर बाल रूप में माँ कर्मा की खिचड़ी का भोग ग्रहण करना पड़ा व जगन्नाथपुरी में प्रभु को माँ कर्मा की खिचड़ी को ही प्रथम भोग के रूप में भी स्वीकार करना पड़ा।
माँ कर्मा की भक्ति से प्रभावित होकर राजस्थान के प्रसिद्ध संत श्री गोस्वामी नाभा जी ने सन् 1614 ई.वी. में भक्त माल ग्रंथ में 246 टीका कवित्त 597 में माँ कर्मा देवी के जीवन चरित्र को दर्शाया है। जन्म, विवाह, भक्ति, भविष्य का चित्रण अपने ज्योतिष विद्या के अनुसार बिल्कुल सही प्रकट किया था किः-
कर्मा माई की कथा अब वर्णो चितलाय ।
अवलों जासु प्रभाव जग सुनहुं संत समुदाय ।।
माँ कर्मा के जीवन चरित्र पर सरल कवित, दोहा, चौपाई, छंद, सोरठा, छप्पय,
आल्हा, कर्मा चलीसा, कर्मा पच्चासा आदि अनेक लेखों के माध्यम से भी लिखा जा चुका है।
अखिल भारतीय साहू समाज की गौरवगाथा भक्त शिरोमणी माँ कर्मा की कृपा व उनकी प्रेरणा से जुड़ी है। बताया जाता है कि लगभग एक हजार वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश झांसी के श्री रामशाह के घर चैत्र मास कृष्ण पक्ष एकादशी संवत् 1073 ई. को एक बहुत ही सुन्दर कन्या ने जन्म लिया। उस समय विद्ववानों ने बताया कि यह कन्या बहु ही गुणवान व भगवान की उपासक रहेगी। अतः इसका नाम कर्मा बाई रखा जाये। कर्मा ज्यों-ज्यों बड़ी हुई त्यों-त्यों उनकी भगवान कृष्ण के प्रति आस्था बढ़ती गई।
चन्द्रमा की सोलह कलाओं की तरह कर्मा बाई उम्र की सीढ़ी देखते ही देखते पार कर गयी। कर्मा बाई विवाह योग्य हो जाने पर उनका विवाह नरबरगढ़ के प्रतिष्ठित तैल व्यवसायी श्री धर्मदास जी से कर दिया गया। विवाह के उपरांत कर्मा बाई सुख चैन से रहने लगी। पति सेवा के पश्चात् जितना भी समय मिलता वह भगवान श्री कृष्ण के पूजन अर्चन में लगाती थी। प्रतिदिन भगवान श्री कृष्ण को प्राप्तः खिचड़ी का भोग लगाया करती इतना अवश्य ध्यान रखती कि प्रभु को भोग लगाने में कहीं देर न हो जाये। इसके लिए कभी-कभी तो बिना स्नान चौका व रीति सदाचार पर ध्यान दिये बिना ही खिचड़ी का भोग बनाकर बहुत ही श्रद्धा से भोग अर्पण करती थीं।
साँची नीति करें प्रभुमाही रीति दिवस बिखरे सुधि नाहीं ।
कब में रूचि - रूचि भोग लगाऊँ कब लालाहिं मैं भोग लगाऊं ।।
एक बार झाँसी नरबरगढ़ के राजा के हाथी को असाध्य खुजली का रोग हो गया। राज वैद्यो के उपचार के बाद भी हाथी का रोग ठीक नहीं हुआ। तब किसी ने राजा को सलाह दी कि कुंड पर तेल में हाथी को नहलाया जाये तो उसकी खुजली मिट सकती है। उस समय साहू लोग तेल का व्यवसाय करते थे। अतः राजा ने नरबरगढ़ के सभी तेल व्यवसायियों को तेल से कुंड भरने का आदेश दिया। तेल व्यवसायियों ने राजा के आदेश का पालन करते हुये तेल कुंड को भरने के लिए रोज कुंड में तेल डालना शुरू किया लेकिन तेल का कुंड भरना इतना आसान नहीं था, तेल व्यवसायियों का सारा तेल खत्म हो गया लेकिन कुंड नहीं भरा तब एक माह के पश्चात सभी तेल व्यवसायियों ने माँ कर्मा से प्रार्थना की-हे माँ तेलियों (साहू) पर आयी विपदा को दूर करो। माँ कर्मा भगवान कृष्ण की अन्ययन भक्त थी उन्होंने अपने साहू समाज पर आय विपदा को दूर करने के लिए भगवान कृष्ण को अर्न्तध्यान होकर पुकारा तब माँ कर्मा के कानों में भगवान कृष्ण की वाणी सुनाई दीः-
यदा यदा ही धर्मस्यग्लानिभवति भारतः,
अभ्युत्थानं धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्हम्। परित्राणाम् साधूनां विनाशाय च दुष्क्रताम्,
व अपने समाज की आराध्य देवी भक्त शिरोमणी माँ कर्मा के त्याग तपस्या और जनकल्याण का यशगान करते हुये सभी गर्व करते है कि हम उस माँ कर्मा देवी की सन्तान है।
भक्ति की शक्ति माँ कर्मा, कृष्ण नाम लय लीन ।
समाज को गौरव दे गई, हमें करे भय हीन ।।
आज पूरे भारत में तैलिक जाति की आबादी लगभग 12 से 23 करोड़ है जो लगभग 850 उप जातियों के नाम से देश के कोने-कोने में निवासरत् है। इसके साथ ही हजारों वर्ष पूर्व भी देश में तैलिक जाति का गौरवशाली इतिहास रहा। कई राज्यों में तैली (साहू) जाति के राजाओं ने राज्य किया है जिनका इतिहास समाज साहित्यों में भरा पड़ा है। आज भी देश में साहू जाति के लोग उच्च पदों पर मौजूद है। सामाजिक, साहित्यिक, उच्च शिक्षा, आर्थिक, औद्योगिक व राजनैतिक क्षेत्रों में अग्रणी हैं। वर्तमान में देश के प्रधान मंत्री के रूप में श्री नरेन्द्र मोदी जी, मुख्यमंत्री के रूप में श्री रघुवरदास जी (झारखण्ड) व अनेक जिलों में सांसद, महापौर, विधायक, पार्षद, न्यायाधीश, पंच, सरपंच आदि मौजूद है। जो समाज का गौरव बढ़ा रहे हैं। हम सब माँ कर्मा के ऋणी है। समाज की यह गरिमा और गौरव हमेशा बरकरार रहे यही कामना माँ कर्मा देवी से करते है।

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