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इसका जीवन में क्या महत्व है /10 Mar 2023 02:05 PM/    811 views

पूजन में स्वास्तिक चिन्ह क्यों बनाया जाता है

डॉ आचार्य राजेश ओझा जी 
 सनातन धर्म में स्वास्तिक या सातिया के चिह्न का विशेष महत्व होता है। घर, पूजा स्थल और मंदिरों में भी स्वास्तिक का शुभ चिह्न जरूर होता है। ज्योतिषाचार्य डॉ राजेश ओझा जी अपने उद्बोधन में बताया की पूजन में  स्वस्तिक क्यों बनाया जाता है और स्वास्तिक का महत्व क्या है। इतना ही नहीं  किसी भी शुभ-मांगलिक कार्य की शुरुआत करने, विशेष अनुष्ठान और गृह प्रवेश से लेकर वाहन सभी की पूजा में स्वास्तिक का चिह्न जरूर बनाया जाता है। इसे लेकर मान्यता है कि स्वास्तिक का चिह्न मंगल का प्रतीक होता है। साथ ही इस चिह्न का संबंध सुख-समृद्धि से भी होता है। यदि इस चिह्न को बनाकर कार्य की शुरुआत की जाती है तो इससे कार्य बिना किसी बाधा के संपन्न होता है। लेकिन  शुभ-मांगलिक कार्य की शुरुआत से पहले स्वास्तिक चिह्न बनाना क्यों जरूरी होता है और इसे इतना शुभ क्यों माना जाता है। हम आपको बताएंगे स्वास्तिक के चिह्न से जुड़ी सभी जरूरी तथ्य।
स्वस्तिक अत्यंत प्राचीनकाल से भारतीय संस्कृति में मंगल का प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए प्रत्येक शुभ और कल्याणकारी कार्य में सर्वप्रथम स्वस्तिक का चिह्न अंकित करने का आदिकाल से ही नियम है।  और पूजन किया जाता है।
 
स्वस्तिक शब्द का मूलभूत 'सु+ अस्+क धातु से बना है। 'सु' का अर्थ है - अच्छा, कल्याणकारी, मंगलमय। 'अस्' का अर्थ है - अस्तित्व, सत्ता और क का अर्थ है कर्ता स्वस्तिक का मूल स्वरूप माने कल्याण की सत्ता, मांगल्य का अस्तित्व 
डॉ.ओझा जी अपने उद्बोधन में कहा की स्वस्तिक शांति, समृद्धि एवं सौभाग्य का प्रतीक है । श्री सनातन संस्कृति की परम्परा के अनुसार पूजन के अवसरों पर, जैसे दीपावली पर्व पर, बहीखाता पूजन में तथा विवाह, नवजात शिशु की छठी तथा अन्य शुभ प्रसंगों में व घर तथा मंदिरों के प्रवेशद्वार पर स्वस्तिक का चिह्न कुमकुम से बनाया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि ’हे प्रभु ! हमारा कार्य निर्विघ्न सफल हो और हमारे घर में जो अन्न, वस्त्र, वैभव आदि आयें वो पवित्र हों ।
किसी भी मंगल कार्य के प्रारम्भ में यह स्वस्ति मंत्र बोला जाता है ।
      मंत्र
     स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः
     स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
 
     स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः
     स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
    ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।
 
'महान कीर्तिवाले इन्द्रदेव ! हमारा कल्याण कीजिये, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव (सूर्यदेव) ! हमारा कल्याण कीजिये, जिनका हथियार अटूट है ऐसे गरुड़देव ! हमारा मंगल कीजिये, बृहस्पतिजी ! हमारे घर में कल्याण की प्रतिष्ठा कीजिये
स्वस्तिक का आकृति विज्ञान स्वस्तिक हिन्दुओं का प्राचीन धर्म-प्रतीक है। यह आकृति ऋषि-मुनियों ने अति प्राचीनकाल में निर्मित की थी। एकमेव अद्वितीय ब्रह्म ही विश्वरूप में फैला है यह बात स्वस्तिक की खड़ी और आड़ी रेखाएँ समझाती हैं। स्वास्तिक की खड़ी रेखा ज्योतिर्लिंग का सूचन करती है और आड़ी रेखा विश्व का विस्तार बताती है । स्वस्तिक की चार भुजाएँ यानी भगवान श्रीविष्णु के चार हाथ । भगवान विष्णु अपने चार हाथों से दिशाओं का पालन करते हैं। देवताओं की शक्ति और मनुष्य की मंगलमय कामनाएँ. - इन दोनों के संयुक्त सामर्थ्य का प्रतीक यानी ’स्वास्तिक’ 
सामुद्रिक शास्त्रों के अनुसार भी स्वस्तिक एक मांगलिक चिह्न है। भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के चरणों में भी स्वास्तिक चिह्न अंकित था ।

  • Pt Ratnesh Pandey

    10 Mar 2023 10:00 AM

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