सुनील शर्मा
नई दिल्ली । जीपीएफआई पर सहमति बनने के बाद अब विदेशों से पैसा भेजना और आसान होगा। बता दें कि जी-20 समूह के शिखर सम्मेलन में लिए गए फैसले में एक यह भी प्रमुख है। इससे विदेश में काम करने वाले कामगार अपने घरों पर पहले की तुलना में अधिक पैसे भेज सकेंगे। शिखर सम्मेलन में गरीब व विकासशील देशों के वित्तीय समावेश के लिए ग्लोबल पार्टनरशिप फॉर फाइनेंशियल इंक्लूजन (जीपीएफआई) पर सहमति बनी है। इनमें एक देश से दूसरे देश में पैसे भेजने की लागत को कम करने का प्रस्ताव शामिल है। जी 20 देशों ने डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) के क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ाने का फैसला किया। गौरतलब है कि डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्च के माध्यम से वित्तीय समावेशन बेहतर करने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए जी20 की नीतिगत सिफारिशों पर तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर बेहतरीन तरीके से डीपीआई को प्रबंधित किया जाए तो इससे लेन देन की लागत कम करने, नवोन्मेष को बढ़ावा देने, प्रतिस्पर्धा तेज करने और इंटरऑपरेटिबिलिटी व ग्राहकों का अनुभव व विकल्प बेहतर करने में मदद मिल सकती है। जीपीएफआई के मसौदे के मुताबिक वर्ष 2021 में एक देश से दूसरे देश में विदेशी मुद्रा भेजने में वैश्विक रूप से औसत लागत 6.21 प्रतिशत की थी जिसे कम करके पांच प्रतिशत तक और वर्ष 2030 तक इसे तीन प्रतिशत तक लाना है। जी 20 फैसले के मुताबिक विदेशी मुद्रा के रेमिटेंस या प्रेषण की लागत कम करने के लिए कम आय वाले देशों में रेमिटेंस की सुविधा का विस्तार किया जाएगा। विश्व का 50 प्रतिशत रेमिटेंस जी 20 से जुड़े देशों में होता है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, अन्य देशों से भारत को भेजी जाने वाली धनराशि, जिसे रेमिटेंस फ्लो कहा जाता है, 2022 में अन्य देशों से दक्षिण एशिया को भेजे जाने वाले धन में 12 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई थी। यह 176 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। क्योंकि यूरोप और खाड़ी देशों में नौकरी के अच्छे अवसर थे। दक्षिण एशिया के लोग वहां काम करने जाते हैं और पैसे वापस अपने परिवारों को भेजते हैं।