सोनिया शर्मा
नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 21 मार्च की रात को गिरफ्तार कर लिया गया। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) आज विशेष पीएमएलए अदालत में पूछताछ के लिए अरविंद केजरीवाल की हिरासत की मांग करेगी। उधर, केजरीवाल ने गुरुवार देर रात अपनी गिरफ्तारी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके मद्देनजर शीर्ष अदालत आज मामले की सुनवाई करेगी।
बता दें कि दिल्ली के सीएम को शराब घोटाले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत गिरफ्तार किया। केजरीवाल को जिस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है, उनके सामने कई मुश्किलें आ सकती हैं। आपको विस्तार से बताते हैं। पीएमएलए में जमानत मिलना मुश्किल होता है। यह कानून 2002 में बनाया गया था और 1 जुलाई 2005 को लागू किया गया था। इस कानून का मुख्य उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग को रोकना है। इसके दायरे में बैंक, म्यूचुअल फंड और बीमा कंपनियां को भी 2012 में शामिल किया गया। इस एक्ट के अंतर्गत अपराधों की जांच की जिम्मेदारी प्रवर्तन निदेशालय के पास होती है। आसान भाषा में समझें तो गैर-कानूनी तरीकों से कमाए गए पैसों को छिपाने को मनी लॉन्ड्रिंग कहते है। यह एक अवैध प्रक्रिया है जो काले धन को सफेद धन में बदलती है। इसी धन की हेरा-फेरी करने वाले को लाउन्डर कहा जाता है।
आम आदमी पार्टी सरकार के तीन मंत्री पहले ही इस कानून के तहत सजा काट रहे है। इसमें पूर्व मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन का नाम शामिल है। यह दोनों पीएमएलए के तहत जेल में हैं। वहीं, आप नेता संजय सिंह भी पीएमएलए में गिरफ्तार हुआ और जेल में बंद हैं।
क्या कहता है यह कानून?
पीएमएलए की धारा 45 का जिक्र दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पहले भी किया था। इस धारा के तहत जमानत मिलना बहुत मुश्किल होता है। आरोपी व्यक्ति के लिए अपनी रिहाई कराना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। पीएमएलए के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती हैं, जिनमें अग्रिम जमानत का कोई प्रावधान नहीं है। आसान भाषा में समझें तो पीएमएलए के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी कि उनके खिलाफ लगे सभी आरोप निराधार हैं। हालांकि, यब साबित करना बेहद मुश्किल हो सकता है। वर्तमान सरकार ने 2018 में पीएमएलए में संशोधन किया था, जिसके मद्देनजर धारा 45 के तहत जमानत के लिए दो सख्त शर्तें है। पहला यह कि कोर्ट को यह मानना होगा कि आरोपी दोषी नहीं है और दूसरा यह कि जमानत के दौरान आरोपी का अपराध करने की कोई भी मंशा नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ईडी की शक्तियों और पीएमएलए अधिनियम में संशोधन को बरकरार रखते हुए कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग एक जघन्य अपराध है, जो देश के सामाजिक और आर्थिक मामले को प्रभावित करता है।