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(शहीदी दिवस, 17 दिसंबर 2023 रविवार) /16 Dec 2023 01:33 PM/    73 views

‘धर्म की रक्षा के लिए बलिदानी’-श्री गुरु तेग बहादुर

श्री गुरु तेग बहादर सिख धर्म के नवें गुरु के रुप में विश्व विख्यात है। श्री गुरु तेग बहादर का जन्म पंजाब के प्रसिद्ध शहर अमृतसर में वैशाख वदी 5 सवंत 1678 अर्थात 12 अपै्रल ईसवीं 1621 को हुआ। उनके पिता का नाम श्री हरगोंविद है जो सिखों के छठवें गुरु है उनकी माता का नाम नानकी है। माता-पिता के गुणों का प्रभाव बालक पर जबरदस्त पड़ा इसी वजह से गुरुजी निर्भीक, गुणवान, सुशील एवं विद्वान बने। माता नानकी बालक तेग बहादर को बाल्यकाल से ही धार्मिक शिक्षा दिया करती थी। बालक तेग बहादुर बाल्यावस्था से ही परमात्मा चिंतन में समय व्यतीत करने लगे। हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान- बात उस समय की है जब कश्मीर के सुबेदार शेर अफगान ने बादशाह औरंगजेब की जोर-जबरदस्ती से धर्म परिवर्तन की नीति के अनुसार हिंदुओं पर अत्याचार करना आरंभ कर दिया। हिंदुओं की दयनीय दशा देखकर मटण निवासी कृपाराम करीब 500 हिंदु ब्राम्हणों को लेकर श्री गुरु तेग बहादर के पास पहुंचा व उन्हें हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों की कहानी सुनायी। गुरुजी कश्मीर के समाचारों को सुनकर द्रवीभुत हुए। उन्होंने कश्मीर के हिंदुओं को आश्वासन दिया कि वे यथा संभव उनकी सहायता करेगें। उन्होंने हिंदुओं को मुगल शासकों की जबरदस्ती धर्म परिवर्तन नीति का विरोध करने के लिये प्रोत्साहित किया। श्री गुरु तेग बहादर ने उन्हे पूर्ण आश्वासन दिया कि वे इस जबरदस्ती धर्म परिवर्तन नीति का विरोध करेंगे और ने उन ब्राम्हणों से कहा कि इसके लिए किसी महान अवतार पुरुष को अपना बलिदान देना पडेगा। वहां पर उपस्थित गुरुजी के सुपुत्र श्री गोविंदराय ने कहा कि ‘‘पिताजी इस दुनिया में आपसे बड़कर महान अवतार पुरुष और कौन हो सकता है क्यों न आप ही हिंदू धर्म की रक्षा व अत्याचार के खिलाफ बलिदानी देते हैं।’’ तब गुरुजी ने हिंदुओं से कहा कि वे कश्मीर जाकर सुबेदार से कह दें कि हमारा आध्यात्मिक गुरु ‘‘नवम् नानक’’ है, यदि वह इस्लाम धर्म धारण कर लंे तो हम सभी मुसलमान बन जायेंगे। 
श्री गुरु तेग बहादर द्वारा जोर जबरदस्ती धर्म परिवर्तन नीति का विरोध करने की सूचना औरंगजेब को दी गई। यह सूचना मिलते ही औरंगजेब ने श्री गुरु तेग बहादर को दिल्ली लाने का हुक्म दिया। शाही फरमान लेकर अधिकारी आनंदपुर पहंुचा, परंतु गुरुजी इससे पुर्व ही दिल्ली रवाना हो गये थे। अन्तर्यामी श्री गुरु तेग बहादर ने जाते समय अपने सुपुत्र बालक गोंविदराय को गुरु दरबार का सारा उत्तरदायित्व सौंप दिया। तदोपरांत कृपाचंद आदि अपने पांच शिष्यों को साथ लेकर गुरुजी ने दिल्ली के लिये प्रस्थान किया। 
आगरा में बादशाह के सिपाहियों ने उनके शिष्यों सहित गिरफ्तार कर लिया और काजी की अदालत में पेश किया। बादशाह ने आगरा के वजीर को हुक्म दिया कि वह गुरु तेग बहादर को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए कहे। औरंगजेब के आदेशानुसार बंदी गृह में शाही काजी ने गुरुजी को कहा कि आप यदि मुसलमान धर्म कबूल करेंगे तो आपको सभी सुख-साधन-धन- जागीरें व मान-सम्मान, इज्जत इत्यादि मिलेगी। इस्लाम धर्म में आपकी पूजा होगी व आप उच्च पीर माने जाऐंगे तथा इस प्रकार के अनेक प्रलोभन गुरुजी को धर्म परिवर्तन स्वीकार करने के लिए दिए। तब गुरुजी ने कहा कि इन सांसारिक सुखों को भोगने के लिए हम परमेश्वर द्वारा दिया गया धर्म नहीं छोड़ सकते। यदि परमात्मा द्वारा दिये गए धर्म को छोड़कर हम दूसरा धर्म ग्रहण करेंगे तो यह परमात्मा के हुक्म को टालना होगा। गुरुजी के धर्म परिवर्तन न स्वीकारने पर काज़ी ने कहा कि बादशाह का हुकुम है कि यदि आप हमारा धर्म कबूल नहीं करेंगे तो फिर आपको कोई करामात या चमत्कार करके दिखाना पडे़गा। गुरुजी ने कहा ‘‘करामात कहर का नाम है।’’ फिर काज़ी ने कहा यदि आप करामात नहीं दिखाओगे तो आपका कत्ल किया जाएगा। गुरुजी ने कहा यह जगत धर्मशाला है हम सभी यहां मुसाफिर हैं, सभी को एक न एक दिन आगे पीछे जाना है। हम इस जगत से जाने के लिए तैयार बैठे हैं। गुरुजी का यह उत्तर सुनकर काजी ने उन्हें कोठ़री में बंद कर दिया व खाना पीना भी बंद कर दिया।
श्री गुरु तेग बहादर के इस्लाम धर्म अस्वीकार करने पर उन्हें भयभीत करने के अनेक प्रयत्न किये गये। परंतु गुरुजी पर इन बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। श्री गुरु तेग बहादर ने उपदेश दिया कि मुसलमानों, सिखों, हिदुओं को एक दुसरे के धर्म में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये तथा मिलकर रहना चाहिये। गुरुजी के धर्म परिवर्तन न मानने पर उनके शिष्यों में से भाई मतीदास को ‘आरी’ से चीरा गया और भाई दयालदास को देग में उबाला गया। इन गुरु शिष्यों ने मृत्यु को तो स्वीकार किया किंतु धर्म परिवर्तन स्वीकार नहीं किया। इतनी यातनाओं के पश्चात भी जब श्री गुरु तेग बहादर ने इस्लाम धर्म को स्वीकार नहीं किया तब औरंगजेब के आदेश पर 19 दिसंबर 1675 ईसवी (साका मघर सुदी 5 संवत् 1732) को उन्हें शहीद कर दिया गया। गुरुजी अपने अंतिम समय में अकाल पुरख का गुणगान करते रहे और अंत में ज्योति को ज्योत में लीन हो गये। वह शहीदी तिथी इस वर्ष रविवार 17 दिसंबर 2023 को है।
श्री गुरु तेग बहादर ने अपना सारा जीवन सामाजिक बुराईयों को हटाने, गरीबों व जरुरतमंदो की मदद के लिये व्यतीत किया। गुरुजी ने हिन्दु धर्म की रक्षा के लिये अपना शीश बलिदान किया इसलिये उन्हें ‘‘हिन्द की चादर’’ के रुप में भी जाना जाता है। श्री गुरू गोबिंद सिंघ ने दसम ग्रंथ के बचित्र नाटक में भी गुरूजी के लिए कहा है ‘‘तिलक जनूं राखा प्रभ ताका कीनो बद़ो कलू महि साका’’  
ऐसे महान ‘हिन्दू धर्म के रक्षक, हिन्द की चादर’ श्री गुरु तेग बहादर को उनके शहीदी दिवस पर दंडवत नमन। 

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