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अहमदिया समुदाय को नहीं मानते मुस्लिम /05 Mar 2024 12:30 PM/    17 views

पाकिस्तान में इस मुस्लिम समुदाय को नहीं मस्जिद जाने का इजाजत

नई दिल्ली। साल 1947 में भारत को दो हिस्से में बांटने का फैसला लिया गया, जिसमें पहला देश तो भारत ही रहा और धर्म के आधार पर हुए बंटवारे के बाद मुस्लिमों के लिए पाकिस्तान बना। दरअसल, पाकिस्तान को इसी सोच के साथ बनाया गया था कि यहां पर मुस्लिम धर्म के लोग निवास करेंगे। हालांकि, इसके बाद भी वहां कुछ मुस्लिम समुदाय के साथ बेहद खराब बर्ताव किया जाता है। अपने ही देश में उन्हें कई तरह के अपमान और तिरस्कार सहने पड़ते हैं। आज के समय में भी कई लोग वहां की नागरिकता के लिए परेशान है और काफी जद्दोजहद के बाद भी कोई खास परिणाम नहीं निकला। पाकिस्तान मुस्लिम-बहुल देश है, जहां अलग-अलग वर्गों और समुदाय के लोग रहते हैं। वहीं, इस बीच एक ऐसा समुदाय है, जो आज भी खुद को मुस्लिम बताते हैं, लेकिन पाकिस्तान में उन्हें अल्पसंख्यक माना जाता है और उन्हें मुस्लिम नहीं माना जाता है। पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के लोग आज भी अपनी पहचान के लिए परेशान है, लेकिन कोई उनकी सुनने को तैयार नहीं है।
आए दिन अहमदिया समुदाय के मुस्लिमों को वहां पर शिकार बनाया जाता है, उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। यहां तक कि उनके प्रार्थना स्थल और कब्रिस्तान में भी तोड़-फोड़ की जाती है। अहमदिया लोगों का कहना है कि वह भी इस्लाम को मानते हैं और कुरान में विश्वास करते हैं, लेकिन फिर भी नहीं कोई समान अधिकार नहीं है, बल्कि उनके साथ बहुत ही खराब बर्ताव किया जाता है। बुरे बर्ताव और परेशान करने से भी मन नहीं भरता है, तो इन लोगों को ईशनिंदा के मामलों में लपेटा जाता है और कड़ी सजा- प्रताड़ना दी जाती है। इस तरह के व्यवहार से परेशान होकर अहमदिया मुस्लिम समुदाय के लोग पाकिस्तान छोड़कर दूसरे देशों में रहने को मजबूर हो रहे हैं।
पाकिस्तान के संविधान में अहमदिया मुसलमानों को मुस्लिम माना ही नहीं गया है, बल्कि यह खुद को मुस्लिम मानते हैं। उन्हें अल्पसंख्यक गैर-मुस्लिम धार्मिक समुदाय का दर्जा दिया गया है और पाकिस्तान ने संविधान संशोधन के जरिए इन्हें गैर-मुस्लिम घोषित किया था। यहां तक कि इन्हें मस्जिदों में भी जाने की मनाही है। यहां तक कि वे अपने प्रार्थना स्थलों पर मीनार नहीं बना सकते पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के लगभग 5 लाख लोग रहते हैं।
अहमदिया मुस्लिम समुदाय की शुरुआत साल 1889 में भारत के पंजाब के लुधियाना में अहमदी आंदोलन के साथ हुई। मिर्जा गुलाम अहमद इस समुदाय के संस्थापक थे, जिनका कहना था कि वह पैगंबर मोहम्मद के अनुयायी है और अल्लाह ने उन्हें शांति-अमन, खून-खराबा रोकने के लिए मसीहा के तौर पर चुना है।

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