कैलिफोर्निया। दुनियाभर में बड़ी संख्या में लोग अस्थमा से जूझ रहे हैं। हर दिन दस अमेरिकी की मौत अस्थमा के कारण होती है। वहीं सालाना 439,000 मरीज अस्पताल में भर्ती होते हैं और इमरजेंसी में आने वाले मरीजों की संख्या 13 लाख तक है। एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस गंभीर बीमारी के इलाज का नया तरीका खोजा है। ला जोला इंस्टीट्यूट फार इम्यूनोलाजी (एलजेआइ) में आटोइम्यूनिटी एंड इन्फैमेशन सेंटर जे जुड़े प्रोफेसर तोशियाकी कावाकामी ने बताया कि अस्थमा अध्ययन के लिए सबसे महत्वपूर्ण एलर्जी डिजिज में से एक है। कावाकामी और उनके सहकर्मियों ने मालिक्यूलर बेस्ड और राइनोवायरस से प्रेरित अस्थमा की तीव्रता की जांच की है। यह एक प्रकार का अस्थमा है जो सर्दी के साथ-साथ विकसित हो सकता है। इस अध्ययन के निष्कर्ष को हाल ही में द जर्नल आफ एलर्जी एंड क्लिनिकल इम्यूनोलाजी में प्रकाशित किया गया है।
प्रोफेसर कावाकामी ने बताया प्रतिरक्षा कोशिकाएं एक टीम के रूप में काम करती हैं और एक-दूसरे से जुड़े रहने के लिए अणुओं का स्राव करती हैं। इन अणुओं में से एक हिस्टामाइन रिलीजिंग फैक्टर (एचआरएफ) है, जो कई प्रकार की कोशिकाओं द्वारा निर्मित होता है, इनमें फेफड़े की कोशिकाएं और मैक्रोफेज नामक प्रतिरक्षा कोशिकाएं शामिल हैं। जब कोई व्यक्ति किसी एलर्जी का सामना करता है तो ये कोशिकाएं अधिक एचआरएफ उत्पन्न करना शुरू कर देती हैं। एचआरएफ तब विशेष एंटीबाडी की तलाश करता है। प्रोफेसर कावाकामी कहते हैं कि अस्थमा सिर्फ एक बीमारी नहीं है। इसके कई रूप होते हैं, जिन्हें एंडोटाइप्स कहा जाता है और वर्तमान अस्थमा उपचार सभी रोगियों के लिए काम नहीं करते हैं। वास्तव में अस्थमा को समझना और उसके इलाज का तरीका अलग-अलग होना चाहिए।
विज्ञानियों ने मानव ब्रोन्कियल कोशिकाओं की एक शृंखला का उपयोग करके प्रयोगशाला प्रयोगों में एचआरएफ और आईजीई इंटरैक्शन के महत्व की पुष्टि की। जब कावाकामी और उनके सहयोगियों ने इन कोशिकाओं को राइनोवायरस से संक्रमित किया तो एचआरएफ स्राव में नाटकीय वृद्धि देखी गई। कावाकामी अब लैब में विकसित एक अणु का उपयोग करेगा। यह अणु, जिसे एचआरएफ-2सीए कहा जाता है। उन्होंने बताया कि अस्थमा के ट्रिगर प्वाइंट प्रदूषण, वस्तु या खाद्य पदार्थ से एलर्जी, धूल या तनाव होते हैं।
मौसम बदलने से पहले दवा लेना शुरू कर दें और हमेशा इन्हेलर रखें उन्होंने बताया कि इस बीमारी को लेकर लोगों में जागरूकता की भी कमी है। अगर किसी को हल्का अस्थमा है तो ऐसे में मरीज को साल में एक-दो बार छाती में जकड़न महसूस हो सकती है या सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। वहीं गंभीर अस्थमा के मामले अमूमन सात या आठ फ़ीसदी ही होते हैं और दवा लेने के बावजूद वो नियंत्रण में नहीं आता है।
इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है और इनके लिए नए इलाज भी सामने आ रहे हैं। इस रोग के विशेषज्ञ मरीजों को सलाह देते हैं कि वे धूल से बचें, प्रदूषण के दौरान मास्क का इस्तेमाल करें और मौसम बदलने से पहले दवा लेना शुरू कर दें और हमेशा इन्हेलर रखें।