🌺गायत्री से आत्मसम्बन्ध स्थापित करने वाले मनुष्य में निरन्तर एक ऐसी सूक्ष्म एवं चैतन्य विद्युत् धारा संचरण करने लगती हैए जो प्रधानतः मन, बुद्धि चित्त और अन्तःकरण पर अपना प्रभाव डालती है। बौद्धिक क्षेत्र के अनेकों कुविचारों, असत् संकल्पों, पतनोन्मुख दुर्गुणों का अन्धकार गायत्री रूपी दिव्य प्रकाश के उदय होने से हटने लगता है। यह प्रकाश जैसे. जैसे तीव्र होने लगता है वैसे. वैसे अन्धकार का अन्त भी उसी क्रम से होता जाता है। मनोभूमि को सुव्यवस्थित, स्वस्थ, सतोगुणी एवं सन्तुलित बनाने में गायत्री का चमत्कारी लाभ असंदिग्ध है और यह भी स्पष्ट है कि जिसकी मनोभूमि जितने अंशों में सुविकसित है वह उसी अनुपात में सुखी रहेगा क्योंकि विचारों से कार्य होते हैं और कार्यों के परिणाम सुख. दुःख के रूप में सामने आते हैं।
🌺’ जिसके विचार उत्तम हैं वह उत्तम कार्य करेगा जिसके कार्य उत्तम होंगे उसके चरणों तले सुख. शान्ति लौटती रहेगी।गायत्री उपासना द्वारा साधकों को बड़े. बड़े लाभ प्राप्त होते हैं। हमारे परामर्श एवं पथ. प्रदर्शन में अब तक अनेकों व्यक्तियों ने गायत्री उपासना की है। उन्हें सांसारिक और आत्मिक जो आश्चर्यजनक लाभ हुए हैं हमने अपनी आँखों देखे हैं। इसका कारण यही है कि उन्हें दैवी वरदान के रूप में सद्बुद्धि प्राप्त होती है और उसके प्रकाश में उन सब दुर्बलताओं, उलझनों कठिनाइयों का हल निकल आता है जो मनुष्य को दीन. हीन दुःखी दरिद्र चिन्तातुर कुमार्गगामी बनाती हैं। जैसे प्रकाश का न होना ही अन्धकार है जैसे अन्धकार स्वतन्त्र रूप से कोई वस्तु नहीं है इसी प्रकार सद्ज्ञान का न होना ही दुःख है अन्यथा परमात्मा की इस पुण्य सृष्टि में दुःख का एक कण भी नहीं है।’
🌺’ परमात्मा सत्. चित् स्वरूप है उसकी रचना भी वैसी ही है। केवल मनुष्य अपनी आन्तरिक दुर्बलता के कारण सद्ज्ञान के अभाव के कारण दुःखी रहता है अन्यथा सुर दुर्लभ मानव शरीर स्वर्गादपि गरीयसी धरती माता पर दुःख का कोई कारण नहीं यहाँ सर्वत्र, सर्वथा आनन्द ही आनन्द है।सद्ज्ञान की उपासना का नाम ही गायत्री उपासना है। जो इस साधना के साधक हैंए उन्हें आत्मिक एवं सांसारिक सुखों की कमी नहीं रहती ऐसा हमारा सुनिश्चित विश्वास और दीर्घकालीन अनुभव है।’
संकलनकर्ता
आचार्य नरेश वशिष्ठ