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अटलबिहारी वाजपेयी का जन्म-दिवस /25 Dec 2022 07:33 PM/    838 views

विलक्षण प्रधानमंत्री वाजपेयी

सोनिया शर्मा
 श्री अटलबिहारी वाजपेयी का जन्म-दिवस है आर्यसमाजी परिवार में श्री अटलबिहारी वाजपेयी ने जन्म लिया था।  दोनों के जन्मदिन! अन्य प्रधानमंत्री भी अपने कुछ विशेष योगदानों के लिए जरूर जाने जाएंगे लेकिन या तो उन्हें अवधि बहुत कम मिली या फिर वे मजबूरी में अपने पद पर बने रहे। ऐसा नहीं है कि उक्त चारों प्रधानमंत्रियों से गल्तियां नहीं हुईं। उनसे भयंकर भूलें भी हुई हैं लेकिन उनका योगदान एतिहासिक रहा। वर्तमान प्रधानमंत्री के मूल्यांकन के लिए अभी प्रतीक्षा करनी होगी लेकिन अटलजी  व्यक्तित्वों में कुछ ऐसे गुण थे जिन्हें भारत-जैसे लोकतांत्रिक देशों के सभी भावी प्रधानमंत्रियों को कुछ न कुछ सीखने को मिल सकता है। उनका पहला गुण तो यह था कि उनके पद ने उन्हें अहंकारग्रस्त नहीं होने दिया। वे आम लोगों और अपने विरोधियों से भी सीधा संवाद रखते थे। दूसरा वे अन्य नेताओं की तरह नौकरशाहों की नौकरी नहीं करते थे। उनसे वे सलाह जरूर लेते थे लेकिन वे निर्णय अपने विवेक से करते थे। तीसरा वे पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र पर बहुत जोर देते थे। अपने मंत्रियों पार्टी अधिकारियों और कार्यकर्ताओं से खुला संवाद करने में वे संकोच नहीं करते थे। चौथा कुछ अन्य प्रधानमंत्री भी आम लोगों की व्यथा-कथा सुनने के लिए खुला दरबार लगाते थे। छठा ये प्रधानमंत्री पत्रकारों से डरते नहीं थे। पत्रकार-परिषदों में पूछे गए बेढंगे सवालों पर भी अपनी संयत प्रतिक्रिया देते थे। पांचवाँ इन दोनों प्रधानमंत्रियों ने ‘बराबरीवालों में प्रथम’ रहने की पुरानी संसदीय परंपरा को भली प्रकार से निभाया। वे अमेरिकी राष्ट्रपति की तरह ‘अपनेवाली’ नहीं चलाते रहे।उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक थे। वहीं शिन्दे की छावनी में २५  दिसंबर १९२४  को ब्रह्ममुहूर्त में उनकी सहधर्मिणी कृष्णा वाजपेयी से अटल जी का जन्म हुआ था। पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में अध्यापन कार्य तो करते ही थे इसके अतिरिक्त वे हिंदी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे। पुत्र में काव्य के गुण वंशानुगत परिपाटी से प्राप्त हुए। महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा रचित अमर कृति विजय पताका पढ़कर अटल जी के जीवन की दिशा ही बदल गयी। अटल जी की बी॰ए॰ की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) में हुई। छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे। कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एम॰ए॰ की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।उसके बाद उन्होंने अपने पिताजी के साथ-साथ कानपुर में ही एल॰एल॰बी॰ की पढ़ाई भी प्रारम्भ की लेकिन उसे बीच में ही विराम देकर पूरी निष्ठा से संघ के कार्य में जुट गये। डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ तो पढ़ा ही साथ-साथ पाञ्चजन्य राष्ट्रधर्म दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन का कार्यभी कुशलता पूर्वक करते रहे। वाजपेयी अपने पूरे जीवन अविवाहित रहे। उन्होंने लंबे समय से दोस्त राजकुमारी कौल और बी॰एन॰ कौल की बेटी नमिता भट्टाचार्य को उन्होंने दत्तक पुत्री के रूप में स्वीकार किया। राजकुमारी कौल की मृत्यु वर्ष 2014 में हो चुकी है। अटल जी के साथ नमिता और उनके पति रंजन भट्टाचार्य रहते थे। वह हिंदी में लिखते हुए एक प्रसिद्ध कवि थे। उनके प्रकाशित कार्यों में कैदी कविराई कुंडलियां शामिल हैं जो 1975-77 आपातकाल के दौरान कैद किए गए कविताओं का संग्रह था और अमर आग है। अपनी कविता के संबंध में उन्होंने लिखा मेरी कविता युद्ध की घोषणा है हारने के लिए एक निर्वासन नहीं है। यह हारने वाले सैनिक की निराशा की ड्रमबीट नहीं है लेकिन युद्ध योद्धा की जीत होगी। यह निराशा की इच्छा नहीं है लेकिन जीत
अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी थे। मेरी इक्यावन कविताएँ अटल जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है। अटल जी ने किशोर वय में ही एक अद्भुत कविता लिखी थी - हिन्दू तन-मन हिन्दू जीवन रग-रग हिन्दू मेरा परिचय जिससे यह पता चलता है कि बचपन से ही उनका रुझान देश हित की तरफ था। इसके साथ ही वे खाने पीने के बहुत शौक़ीन थे .उन्हें भांग के अलावा मछली खाना प्रिय थी .
मृत्यु
अटल बिहारी वाजपेयी जी को २००९  में दिल का एक दौरा पड़ा था जिसके बाद वह बोलने में असक्षम हो गए थे। उन्हें ११ जून २०१८ में किडनी में संक्रमण और कुछ अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था जहाँ १६ अगस्त २०१८ को शाम ०५रू०५ बजे उनकी मृत्यु हो गयी। उन्हें अगले दिन १७ अगस्त को हिंदू संस्कृति पद्धति के अनुसार अंतिम संस्कार किया गया । उनकी दत्घ्तक पुत्री नमिता कौल भट्टाचार्या ने उन्हें मुखाग्नि दी। उनका समाधि स्थल राजघाट के पास शान्ति वन में बने स्मृति स्थल में बनाया गया है। उनकी अंतिम यात्रा बहुत भव्य तरीके से निकाली गयी। जिसमे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत सैंकड़ों नेता गण पैदल चलते हुए गंतव्य तक पहुंचे। वाजपेयी के निधन पर भारत भर में सात दिन के राजकीय शोक की घोषणा की गयी। अमेरिका चीन बांग्लादेश ब्रिटेन नेपाल और जापान समेत विश्व के कई राष्ट्रों द्वारा उनके निधन पर दुःख जताया गया। अटल जी की अस्थियों को देश की सभी प्रमुख नदियों में विसर्जित किया गया। 
 

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