नई दिल्ली। शास्त्र में शनि भगवान को क्रूर ग्रह माना गया है। कहा जाता है, वे व्यक्ति के कर्मों के हिसाब से उसे फल और दंड देते हैं। शनिवार का दिन शनिदेव की पूजा के लिए समर्पित है। मान्यता है कि जो लोग इस दिन सच्चे भाव के साथ न्याय की देवता की पूजा करते हैं, वे उनकी सभी मुराद पूरी करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, अगर कोई साधक शनि कवच का पाठ करता है, शनिदेव उसपर कभी अपनी बुरी दृष्टि नहीं डालते हैं। ऐसे में हर किसी को इस कल्याणकारी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए
जो इस प्रकार है
शनि कवच पाठ
अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,
शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः
नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुजरू सूर्यसुतरू प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदरू प्रशान्तः।।
श्रृणुध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महंत्।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।
ऊँ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनंदनरू।
नेत्रे छायात्मजः पातु कर्णाे यमानुजरू।।
नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्कररू सदा।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुजरू।।
स्कन्धौ पातु शनिश्चौव करौ पातु शुभप्रदरू।
वक्षरू पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।
नाभिं गृहपतिः पातु मन्दरू पातु कटिं तथा।
ऊरू ममौन्तकः पातु यमो जानुयुगं तथा।।
पदौ मन्दगतिः पातु सर्वांग पातु पिप्पलरू।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दनः।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य यः।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यजः।।
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोैपि वा।
कलत्रस्थो गतोवौपि सुप्रीतस्तु सदा शनिः।।
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः।।