सोनिया शर्मा
नई दिल्ली। एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हर एक फील्ड में काम कर रही है। यहां तक की भावानात्मक रिश्ते निभाने में भी काम आ रही है। एआई अब अकेलापन दूर करने में काम आ रही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की प्रगति ने कई क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है, लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि क्या यह हमारे भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। रिसर्चर इस बात पर जोर देते है कि एआई द्वारा दिखाए जाने वाले प्यार और सहानुभूति को वास्तविक मानव संबंधों के साथ नहीं बदलना चाहिए। एआई चैटबॉट और वर्चुअल साथी हमें आराम और साथी दे सकते हैं, लेकिन उनमें असली भावनाएं नहीं होती हैं और वे इंसानों की भावनाओं की जगह नहीं ले सकते हैं। शोध के अनुसार, जब हम किसी रिश्ते की तलाश करते हैं, तो हम भूल जाते हैं कि वास्तव में प्यार सहानुभूति से पैदा होता है। रिसर्चर इसे दिखावटी सहानुभूति कहती हैं क्योंकि मशीन आपके साथ सहानुभूति नहीं रखती है। उसका काम आपको दवाई और आपके काम याद दिलाना है, प्यार करना नहीं है। यह महत्वपूर्ण है कि हम एआई के साथ अपने संबंधों को संतुलित रखें और वास्तविक मानव संबंधों को महत्व दें। एआई का उपयोग हमारे जीवन को आसान बनाने और हमें सहायता प्रदान करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन इसे हमारे भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित नहीं करने देना चाहिए। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस काम के साथ-साथ अब अकेलेपन से लड़ने में भी मदद कर रहा है। कई कंपनियां वर्चुअली एआई पार्टनर भी तैयार कर रही हैं, जो आपसे प्यार भरी बातें करेगा और आपका ध्यान रखेगा। कई लोग इनसे ऑनलाइन घंटों चैट करते रहते हैं। लेकिन एमआईटी सोसियोलिस्ट और साइकोलॉजिस्ट रिसर्चर ने अब इसे लेकर अलर्ट किया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि ऐसे वर्चुअली एआई पार्टनर से अगर आपको प्यार हो जाता है, तो ध्यान रखें कि यह सिर्फ एक दिखावा है। शेरी ने ये भी बताया है कि एआई द्वारा की जाने वाली ये बातें बनावटी हैं और यह इंसान की भावनात्मक स्वास्थ्य को कमजोर कर सकते हैं। शेरी करीब एक दशक से इंसान और टेक्नोलॉजी के बीच पनपते इस रिश्ते पर रिसर्च कर रही हैं।