हिदू कैलेंडर के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सूरदास जी का जन्म हुआ था। इसलिए हर साल इस दिन को सूरदास जयंती के रूप में मनाया जाता है। अतः सूरदास की जयंती 12 मई 2024 को है। उनके पिता का नाम पंडित था। रामदास सारस्वत ब्राह्मण और माता का नाम जमुना दास था। सूरदास के पिता एक प्रसिद्ध गायक थे। सूरदास के जन्मांध होने की कई कहानियाँ प्रचलित हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि वह जन्म से ही अंधे थे, जबकि अन्य का मानना है कि वह बाद में अंधे हो गये। फरीदाबाद के निकट जी गाँव में उनका जन्म हुआ था वे जन्म से ही अंधे थे इसलिए उनका नाम सूरदास हुआ उन्होंने सूरसागर आदि महान रचनाओं की रचना की थी। सूरदास ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की। उसके बाद उन्होंने संस्कृत, व्याकरण, साहित्य और संगीत का अध्ययन किया। वह एक कुशल गायक और कवि थे। एक बार सूरदास की भेंट श्री वल्लभाचार्य से आगरा के निकट गऊघाट पर हुई। वल्लभाचार्य ने उन्हें पुष्टिमार्ग में दीक्षित किया और कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। वल्लभाचार्य के शिष्य के रूप में सूरदास ने कई वर्षों तक कृष्णलीला के कई पद गाए और लिखे। सूरदास को वल्लभाचार्य का शिष्य माना जाता है। वे मथुरा के गऊघाट स्थित श्रीनाथ जी के मंदिर में रहते थे। सूरदास का भी विवाह हो गया। आपको बता दें कि अलग होने से पहले वह अपने परिवार के साथ रहते थे। वल्लभाचार्य से मिलने से पहले सूरदास विनम्रता के पद गाते थे, लेकिन जब वे वल्लभाचार्य से मिले और उनके संपर्क में आए तो उन्होंने कृष्णलीला गाना शुरू कर दिया। कहा जाता है कि तुलसी की मुलाकात एक बार मथुरा में सूरदास जी से हुई और धीरे-धीरे उनके बीच प्रेम की भावना बढ़ती गई। ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास ने सूरदास के प्रभाव में आकर श्री कृष्ण गीतावली की रचना की थी। सूरदास की सबसे प्रसिद्ध रचना सूरसागर है। यह एक महाकाव्य है जिसमें कृष्णलीला का वर्णन है। इस महाकाव्य में सूरदास ने कृष्ण के बचपन से लेकर उनके द्वारिका प्रवास तक की घटनाओं का वर्णन किया है। इस रचना ने सूरदास को हिन्दी साहित्य का सूर्य बना दिया। वह अपनी रचना सूरसागर के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं। ऐसा माना जाता है कि उनके काम में लगभग 100000 गाने हैं, लेकिन आज केवल 8000 ही बचे हैं। इन गीतों में कृष्ण के बचपन और उनकी लीलाओं का वर्णन किया गया है। सूरदास अपनी कृष्ण भक्ति के साथ-साथ अपनी प्रसिद्ध रचना सूरसागर के लिए भी जाने जाते हैं। सूरदास की अनेक गद्य कृति है। इसमें सूरदास ने अपने जीवन और अनुभवों का वर्णन किया है। साहित्य लहरी 118 छंदों की एक लघु रचना है। यह सूरदास की एक काव्य रचना है। इसमें नल और दमयंती के प्रेम प्रसंग का वर्णन है। यह सूरदास की अनेक काव्य रचना भगवान कृष्ण के प्रति सच्ची भक़्ती को दर्शाता है। इसमें कृष्ण और राधा के प्रेम प्रसंग का वर्णन है। सूरदास एक महान भक्त कवि थे। उन्होंने अपने काव्य में कृष्ण भक्ति की अनूठी भावना का परिचय दिया। सूरदास एक कुशल कवि थे। उन्होंने अपने काव्य में ब्रज भाषा का सुन्दर प्रयोग किया है। सूरदास एक भावुक कवि थे। उन्होंने अपने काव्य में कृष्ण भक्ति के भावपूर्ण रूप को व्यक्त किया है। सूरदास हिन्दी साहित्य के महान कवि थे। उनकी कृतियों ने हिन्दी साहित्य को गौरवान्वित किया है। उनकी कविता का प्रभाव हिन्दी साहित्य के परवर्ती कवियों पर पड़ा। सूरदास की रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण की भक्ति की भावना सर्वोपरि है। वह भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे। उन्होंने अपने काव्य में कृष्ण भक्ति की अनूठी भावना दर्शायी है। उनके काव्य में कृष्ण के प्रति प्रेम, सौन्दर्य और करुणा की भावनाएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं। सूरदास एक कुशल कवि थे। उन्होंने अपने काव्य में ब्रज भाषा का सुन्दर प्रयोग किया है। इनमें छंद, अलंकार और रस का सुंदर प्रयोग हुआ है सूरदास की मृत्यु जुलाई 1583 ई. में हुई। वे हिन्दी साहित्य के अमर कवि हैं। उनके काम आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं और लोग उनकी रचनाओं को बड़े चाव से गाते हैं।