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विपक्ष हार कर भी जीत गई

18 वी लोक सभा चुनाव में विपक्ष कर्ण की तरह लड़ी

13 Jun 2024 12:00 PM 105 views

विपक्ष हार कर भी जीत गई

विश्व के सबसें बड़े लोकतंत्र भारत ने एक पुनः साबित कर भारत ही सचमुच में  प्रजातंत्र की जननी है। 18वें लोक सभा चुनाव जो कि विषम परिस्थितियों में सबसे लम्बी अविधि चलने के समाप्त हो चुकी है। इस लोक सभा के साधारण चुनाव के परिणाम नें यह एक बार पुनः साबित कर प्रजातंत्र में जनता ही जनार्दन है जनता जनार्दन ने विपक्षी दलों को अपना समर्थन दिया है। भले  ही विपक्ष जीता न हो लेकिन उसने भाजपा व प्रधानमंत्री मोदी का घमंड जरूर तोड़ दिया है। जिसका सबसे बड़ा प्रमाण मोदी की गारंटी व तुष्ट्रीकरण वाली एजेडें का नकारते हुए भाजपा को करारा जबाब दिया है। यही कारण भाजपा बहुमत के आंकड़े से पीछे रह गई है। सता के लोभ में अपनी नीति को ताख पर रखते हुए गठबन्धन करते हुए अपने घुटने टेक दिए। वे जिस नेहरू को पानी पी पी कर दस साल गाली देते रहे उन्ही के रिकार्ड की बराबरी करने के लिए लगातार तीसरी बार शपथ जरूर लेने जा रहे हैं लेकिन सरकार चलाने के लिए उन्हें चन्द्र बाबु नायडू और नीतीश कुमार सता सिघासन पर आशीन होने के गठबन्धन करना पड़ा है वही विपक्ष चुनावी समर क्षेत्र महा भारत के कर्ण की तरह लोक सभा चुनाव लड़ी है। जैसा कि सर्वविदित सन 2024 का चुनावी महाभारत समाप्त हो गया है। इस बार  चुनावी समर क्षेत्र को देखने के बाद मुझे महाभारत का एक प्रसंग याद आ रहा है। जब अर्जुन और कर्ण के बीच धर्म युद्ध हो रहा था। कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन जब वाण चलाते थे तो बाणों के वेग से कर्ण का रथ मीलों पीछे चला जाता था,लेकिन जब कर्ण वाण चलाता था तो अर्जुन का रथ महज तीन कदम पीछे जाता था। इसके बाबूजूद अर्जुन के सारथी बने स्वयं भगवान कृष्ण के मुंह से निकल पड़ता था-वाह कर्ण वाह.... अर्जुन को कृष्ण के मुंह से कर्ण की तारीफ सुनकर अच्छा नही लगता था। वे दुखी हो रहे थे। आखिर में ऊर्जून नेअपनी नाराजगी जताते हुए श्री कृष्ण से पूछा- हे वासुदेव  मैं जब तीर चलाता हूं तो कर्ण का रथ मीलों पीछे चला जाता है और वह जब वाण चलाता है तो मेरा रथ सिर्फ तीन कदम पीछे हटता है। फिर भी आप मेरी बजाय कर्ण की तारीफ करते हैं। तब कृष्ण ने अर्जुन को सच्चाई बताई। कृष्ण ने  अर्जुन कहा कि वे स्वयं उनके रथ पर तीनों लोकों का भार लेकर बैठे हैं।इसके अलावा रथ पर फहरा रही पताका पर हनुमान जी रोम-रोम में पहाड़ बांधकर सवार थे। इतना वजन होने के बावजूद कर्ण अपने बाणों से अर्जुन के रथ को तीन कदम पीछे ढकेल देता था। ’18 वीं लोक सभा चुनाव में विपक्ष कर्ण की तरह लड़ी। विश्व के सबसें बड़े लोकतंत्र भारत ने एक पुनः साबित कर भारत ही सचमुच में  प्रजातंत्र की जननी है’                    
मुझे भी इस लोक सभा चुनाव में भी वही सब देखने को मिला। एक तरफ स्वयं भीष्म पितामह की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके चाणक्य अमित शाह और योगी आदित्यनाथ तथा राजनाथ सिंह समेत भाजपा सासित प्रदेशों के मुख्य मंत्री उनके दर्जनों सहयोगी थे। 10 वर्ष तक केंद्र सरकार-सरकारी तंत्र थे,दूसरी राहुल गांधी व  थे व उसके सहयोगियों में अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव,स्टालिन आदि कम नामधारी क्षेत्रीय दलों के नेता थे आखिर में पश्चिमी बंगाल के योद्धा ममता बनर्जी नें इस लड़ाई में साथ नही ही आईं।वे विपक्ष के खेमे में जरूर थी लेकिन उन्होंने अपना डेरा अलग से जमा रखा था।इसके अलावा मोदी जी के पास तमाम.संसाधन व सरकारी तंत्र थे।सता में रहने के कारण घन के देवता कुबेर का चुनावी चन्दा रूप बांड से उगाहे गए हजारों करोड़ रुपये,चुनाव आयोग और दूसरी सरकारी एजेंसियों, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी ), सीबीआई और इनकम टैक्स विभाग, गोदी मीडिया और सर्वे करनी वाली मायावी राक्षसी प्रवृत्ति वाली एजेंसियों की ताकत थी जो आखिरी समय  तक विपक्षी नेताओं को परेशान करती रही। इसके बावजूद विपक्षी नेताओं ने मोदी जी के दांत खट्टे कर दिये। सम्पूर्ण देश में मोदी की गारंटी ,राम मन्दिर मंगल सुत्र हिन्दु खतरे में के सहारे 400 पार की गगन भेदी घोषणा करने वाले की टीम थी। भारतीय मतदाताओ नें मोदी जी के विजय रथ को 240 सीटो व सहयोगी दलों एन डी ए 290 में ही जबरदस्त ब्रेक लगा दिया है। बीजेपी को उन्होंने पूर्ण बहुमत नही पाने दिया। ’18वें लोक सभा चुनाव जो कि विषम परिस्थितियों में सबसे लम्बी अविधि चलने के समाप्त हो चुकी है। इस लोक सभा के साधारण चुनाव के परिणाम नें यह एक बार पुनः साबित कर प्रजातंत्र में जनता ही जनार्दन है’ नरेन्द्र मोदी जी प्रधानमंत्री पद पाने के लिए गठबन्धन कर लिया। परिणाम स्वरूप राजनीति पंडितओं में चर्चा व चिन्तन का दौर शुरू हो गया है कि मोदी जी जो कल तक विश्वगुरु भारत को बना रहा था अच्छे दिन का राग अलाप रहे  हिन्दु राष्ट्र बनाने का सपना देख रहे है। हमने राम को लाये है।राम को लाने वाले को जनता लायेगी। इसी बल पर अबकी बार 400 पार का गर्जना करते थक नही रहें थें - उन्हे केन्द्र में सता के सिघासन पर आसीन होने के लिए चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के हाथ थाम कर वैसाखी लेने को मोदी मजबुर हो गई है। राजनीतिक पंडितओ के माने तो मोदी जी के 36 के आंकड़े न भी हों तो मधुर संबंध तो नही ही हैं। इस चुनाव की सबसे खास और बीजेपी के लिए सबसे खतरनाक बात यह है कि भारत के उत्तर और पश्चिम उसके अभेद्य किले को विपक्ष ने भेद दिया है। कही ध्वस्त किया है तो कहीं बड़ा नुकसान पहुंचाया है ।दिल्ली की सता  के द्वारा  देश के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में उन्होंने बीजेपी को धूल चटा दी है।आप को बता दे कि पिछले लोक सभा चुनाव में 62 सीट जीतने वाली बीजेपी को इस बार  33 सीटों पर समेट दिया है। राजस्थान मे बराबरी से मुकाबला किया है।जहां पिछले चुनाव में बीजेपी ने सभी 25 सीटें जीती थीं वहीं इस बार 11 सीटें कांग्रेस ने उससे छीन ली हैं। महाराष्ट्र में तो यूपी जैसा ही धमाका किया है।वहां की 48 में से करीब 30 सीटों पर कब्जा जमा लिया है। बिहार में भी कोई बड़ी सफलता तो नही हासिल कर पाया । विपक्ष लेकिन पहले जहां एनडीए ने 40 में से 39 सीटें हासिल की थी वही इस बार उसे 31 पर ही रोक दिया है।  सबसे पुराना किला गुजरात में भी इस चुनाव मेंगोला दागकर एक सूराख बना दिया है जो राज्य में बीजेपी की कमजोरी का चिन्ह बन गया है। दक्षिण भारत में बीजेपी का बहुत कुछ पहले भी नही था। नार्थ ईस्ट में भी उसे इस बार झटका लगा है। पिछली बार वहां की 25 में से 23 सीटें एनडीए ने जीती थी जो कि इस बार 16 पर ही सिमट गईं। बीजेपी के लिए एक राज्य ओडिशा वरदान साबित हुआ है। सही मायने में यही बीजेपी का फायदा है। वहां इसकी पहली बार सरकार तो बन ही रही है,वहां की लोक सभा की भी लगभग सारी सीटें ही उसने जीत ली हैं। अगर ओडिशा ने बीजेपी का इस कदर साथ न दिया होता तो मोदी जी इस बार सत्ता से ही बाहर हो जाते। मोदी के अंधभक्त इस बात से भी खुश हो सकते हैं कि चाहे जैसे भी हो तीसरी बार मोदी जी के प्रधानमंत्री सपथ ग्रहण हो गया है,लेकिन बीजेपी के शुभचितक इस बात को जरूर समझ गये होंगे कि मोदी का जादुई मैजिक करिश्मा धुमिल हो गया है। अंध भक्त मोदी सरकार के सपथ ग्रहण समारोह को लेकर काफी उत्साहित है क्योंकि उनके नेता जवाहर लाल नेहरू के तीन बार प्रधान मंत्री बनने का श्रेणी खड़े हो रहें है। लैकिन उनकी खुशी कब तक रहेगी  मोदी का चेहरा अब तक अकेले निर्णय लिया करते थे लेकिन गठबन्धन की सरकार में उन्हे अपने सहयोगी दलो के संग निर्णय लेना होगा। भारतीय राजनीति में गठबन्धन सरकार अनुभव - नरसिम्हा राव का कार्यकाल को छोड़ दे सुःखद नही है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि - क्या मोदी की नेतृत्व में एन डी ए व गठबन्धन सरकार कितने दिनो तक चल पायेगी । मोदी जी क्या पहले की तरह बड़े फैसले ले पायेंगे क्या । वही कुछ दिनों में महाराष्ट्र , हरियाणा व अगले वर्ष दिल्ली , विहार  झारखण्ड में विधान सभा के चुनाव होने वाले है। उस समय ही एन डी ए व गठबन्ध की सरकार की अग्नि परीक्षा होगी। अभी से मोदी सरकार का भविष्य क्या होगा  - कुछ कहना अतिश्रुति होगी । हमें व आप को इंतजार करना ही उचित होगा । फिलहाल आप से यह कहते हुए विदा लेते है-ना ही काहुँ से दोस्ती,ना ही काहुँ से बैर। खबरीलाल तो माँगे,सबकी खैर फिर मिलेगें तिरक्षी नजर से तीखी खबर के संग तब तक के लिए !